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८ अध्याय बंधद्वार ।
दोहा - कही निर्जरा की कथा, शिवपथ साधनहार ।
अव कछु बंध प्रबंधको, कहूं अल्प विस्तार ॥ ३८॥ सवैया इकतीसा - मोहमद पाई जिन संसारी विकल कीने, याहिते अजानुबाहुविरद वहतु है । ऐसो वंधवीर विकराल महाजाल सम, ज्ञानमंद करे चंदराहु ज्यों गहतु है ॥ ताको वल संजिवेकों घटमें प्रगट भयो, उद्धत उदार जाको उस मह है । तो है समकित सूर आनंद अंकूर ताही, निरखि बनारसी नमो नमो कहतु है ॥ ३९ ॥
सवैया इकतीसा - जहां परमातम कलाको परगास तहां, धरम धरा में सत्य सूरजको धूपहै । जहां शुभ अशुभ करमको गढास तहां, मोहके विलास में महाअंधेर कूप है | फेळी फिरै छटासी घटासी घटघनवीच, चेतनकी चेतना दु धागुपचूप है । वुद्धिसों न गहीजाय वेनसों न कहीजाय पानी की तरंग जैसे पानीमें गुडूप है ॥ ४० ॥
सवैया इकतीसा - कर्मजाल वर्गनासों जगमें न बंधे जीव, वंधे न कदापिमन वच काय जोगसों । चेतन अचेतन की हिंसासों न बंधेजीव, बंधे न अलख पंचविषे दिखरोगसों ॥ कर्मों अवध सिद्ध जोगसों अबंध जिन हिंसासों अबंध साधु ज्ञाता विषै भोगसों । इत्यादिक वस्तु के मिलापसों न बंधे जीव, बंधे एक रागादि अशुद्ध उपजोगसों ॥ ४१ ॥
सवैया इकतीसा - कर्मजाल वर्गनाको वास लोकाकाश माहिं, मनवच कायको निवास गति आउमें । चेतन अ