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________________ . ..." ( ३८) । ज्ञान कला परकाशसों, सहज मोक्षपद होइ ॥ २ ॥ ज्ञानकला घट घट बसे, योग युगतिके पार । निज निज कलाउदोत करि, मुक्तहोइ संसारः॥ ३॥ - कुंडलियाछन्द-अनुभव चिंतामनिरतन, जाके हिय परगास। सो पुनीत शिवपद लहै, देहै चतुर्गति वास ॥ दहै चतुर्गतिवास, भासधरि क्रियान मंडै । नूतन वैध निरोध, पूर्व कृत कर्म विहंडै ॥ ताके न गनु विकार, न गनु वहुभार न गनु भौ । जाके हिरदे माहि, रतन चिंतामनि अनुभौ ॥ १ ॥ __ सवैया इकतीसा-जिनकेहियेमें सत्य सूरज उदोत भयो, फेलिमति किरन मिथ्यात तम. नष्टहै । जिनकी सुदृष्टिमें न परचै विषमतासों समतासों प्रीति ममतासों लष्ट पुष्टहै ।।... जिन्हके कटाक्षमें सहज मोक्षपथ सधै, साधन निरोध जाके तनको न कष्टहै । तिन्हको करमकी किलोल यहहै समाधि डोले. यह जोगासन वोले यह मष्ट है ॥ ५॥ ... सवैया इकतीसा-भातम सुभाउ परभाउकी न सुद्धि : ताको, जाको मनमगन परिग्रहमें रह्यो है । ऐसो अविवेक को निधान परिग्रह राग, ताको त्याग इहालों समुञ्चैरूप कह्यो है। अब निज परे भ्रम दूरि करिवेको काजु बहुरो सुः गुरुः उपदेशको उमह्यो है। परिग्रह अरु परिग्रहको विशेष अंग कहिवेको उद्यम उदीरि लहलह्यो है. ॥ ६॥::::: दोहा-त्याग जोग परवस्तुसव, यह सामान्य विचार। . विविधवस्तु नाना विरति, यह विशेषविस्तार ॥ ७ ॥ चौपाई-पूरव कर्म उदै रस भुजे ज्ञान मगन ममता..
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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