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दूसराअध्याय अजीवद्वार। दोहा--जीव तत्व अधिकार यह, कह्यो प्रकट समुझाइ। ... अब अधिकार अजीवको,सुनोचतुर मनलाइ १८७॥ - सवैया इकतीसा--परम प्रतीत उपजाइ गर्नधर कीसी, अंतर अनादि की विभावता बिदारीहै । भेद ज्ञान दृष्टि सों विवेककी सकति साधि, चेतन अचेतनकी दशा निरवारी है। करमको नास करी अनुभौ अभ्यास धारी, हियेमें ह...
रष निज शुद्धता सँभारी है। अंतराय नास गयो शुद्ध पर.. • कास भयो, ज्ञानको बिलास ताको बंदना हमारी है।८८॥ .. सवैया इकतीसा-- भैया जगबासीतूं उदासी ढके जगत सौं, एक छः महीना उपदेश मेरो मानुरे। और संकलप वि.कलपके विकार तजि, बैठके एकंतमन एकठोर आनुरे । तेरो : घट सर तामें तुहीहै कमल ताकों, तूही मधुकरहै सुवास .. .. पहिचानुरे । प्रापति न लॅहै कछु ऐलो तूं विचारतुहै, सही . हहै प्रापति संरूप याही जानुरे ॥ ६ ॥ . दोहा--चेतनवन्त अनंत गुण, सहित सुआतम राम।
याते अनमिल और सब, पुद्गलके परिणाम ॥ ९॥ - कवित्त छंद--जब चेतन सँभारि निज पौरुष, निरखै निज दृगसों निज मर्म । तब सुखरूप विमल अविनाशक
जानै जगतः शिरोमनि धर्म ॥ अनुभौ करै शुद्ध चेतन को, · रमै सुभाव व मै सब कर्म। इहि विधि सधै मुक्तिकोमारग
अरु समीप आवै शिव शर्म ॥ ६ ॥ ... दोहा--बरनादिक रांगादि जड़, रूप हमारो नाहि ।
एक ब्रह्म नहिं दूसरो, दीसे अनुभव मांहि ॥६२॥