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________________ (१०) उरतैन गहतु है, सम्यक दरस जोई आतमसरूप सोई । मेरे घट प्रगटयो बनारसी कहतुहै ॥ ५८ ॥ .. __ सवैया इकतीसा-जैसै तृनकाठ वांस आरनै इत्यादि और, इंधन अनेक विधि पावक में दहिये। आकति दिलोकत क. हावै आगि नानारूप, दीशै एक दाहक सुभाउ जव गहिये। तैसै नव तत्व में भयो है बहु भेखी जीब, शुद्धरूप मिश्रित अशुद्धरूप कहिये । जाहीछिन चेतनाशकतिको विचार की जै, ताही छिन अलख अभेदरूप लहिये ॥ ५९ ॥ सबैया इकतीसा-जैसै बनबारी में कुधातुके मिलाप हेम, नाना भांति भयो पैतशापि एक नाम है । कसिके कसोटी लीक निरखै सराफ तांही, बानके प्रमान करि लेतु देतु दामहै। तैसही अनादि पुद्गलसों संयोगी जीव, नवतत्वरूप में अरूपी महा धाम है, । दीशे उनमानसो उद्योत बान ठौर ठौर, दूसरों:न और एक आतमाहि राम है ॥६॥ सवैया इकतीसा-जैसै रविमंडल के उदै महिसंडल में, आतप अटल तम पटल बिलातु है। तेसै परमातमाको अन भौ रहत जो लों, तो लों कहूं दुविधा न कहू पक्षपातु है। नयको न लेश परवानकोन परवेश, निछपके वंसको विधंस होतु जातुहै, जे जे वस्तु साधक हैं तेउ तहां वाधक है वाकी रागदोष की दशाकी कौन वातु है॥६१॥ अडिल्ल छंद-आदि अंत पूरन सुभाव संयुक्त है, परस्वरूप परजोग कलपना मुक्त है। सदा एकरस प्रगट कही है जैनों शुद्ध नयातमवस्तु विराजे वैनमें ॥२॥ कवित्त छंद-सतगुरु कहै भव्य जीवनिसों, तोरहु तरत..'
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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