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मुहरत में ग्रंथि भेदि, मारग उलंघि सुखवेदे मोख वितके ।। तातें अंतर मुहूरतसों अर्द्ध पुद्गललों, जत समें होही तेते भेद समकितके । जाही समे जाको जब समकित होई सोई, त बहसों गुन गहे दोष दहे इतके ॥ ९५ ॥ दोहा - अथ
पूर्व अनवर्त्ति त्रिक, करन करे जो कोइ । मिथ्या ग्रंथि बिंदार गुन, प्रगटे समकित सोइ ॥ ९६ ॥ समकित उतपति चिन्हगुन, भूषनदोपविनास । छातीचार जुतअष्ट विधि, वरनों विवरन तास ॥ ९७ ॥ चौपाई |
सत्य प्रतीति अवस्था जाकी । दिनदिन रीतिगहे समता की। छिन छिन करेसत्यको साको। समकितनां उकहा वेताको ९८ ॥
दोहा - केतो सहज सुभाउको, उपदेशे गुरु कोइ ।
चिहुँ गतिसंती जीवकों, सम्यक् दरशन होइ ॥ ९९ ॥ आपा पर परचे विषे, उपजे नहिं संदेह | सहज प्रपंचरहित दशा, समकित लक्षण एह ॥ ६०० ॥ करुना वछल सुजनता, आतमनिंदा पाठ । समता भगति विरागता, धरमराग गुनआठ ॥ १ ॥ चित प्रभावना भावजुत, हेय उपादयधानि । धीरज हरष प्रवनिता, भूषन पंच वखानि ॥ २ ॥ अष्ट महामद अष्ट मल, षट आयतन विशेष । तीन मूढता संजगत, दोष पचीसी एष ॥ ३ ॥ जाति लाभकुल रूपतप, वलविद्या अधिकार ।
* इन्हकोगरबजु कीजिये, यह मद अष्ट प्रकार ॥ ४ ॥