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________________ ( १०४ ) मुहरत में ग्रंथि भेदि, मारग उलंघि सुखवेदे मोख वितके ।। तातें अंतर मुहूरतसों अर्द्ध पुद्गललों, जत समें होही तेते भेद समकितके । जाही समे जाको जब समकित होई सोई, त बहसों गुन गहे दोष दहे इतके ॥ ९५ ॥ दोहा - अथ पूर्व अनवर्त्ति त्रिक, करन करे जो कोइ । मिथ्या ग्रंथि बिंदार गुन, प्रगटे समकित सोइ ॥ ९६ ॥ समकित उतपति चिन्हगुन, भूषनदोपविनास । छातीचार जुतअष्ट विधि, वरनों विवरन तास ॥ ९७ ॥ चौपाई | सत्य प्रतीति अवस्था जाकी । दिनदिन रीतिगहे समता की। छिन छिन करेसत्यको साको। समकितनां उकहा वेताको ९८ ॥ दोहा - केतो सहज सुभाउको, उपदेशे गुरु कोइ । चिहुँ गतिसंती जीवकों, सम्यक् दरशन होइ ॥ ९९ ॥ आपा पर परचे विषे, उपजे नहिं संदेह | सहज प्रपंचरहित दशा, समकित लक्षण एह ॥ ६०० ॥ करुना वछल सुजनता, आतमनिंदा पाठ । समता भगति विरागता, धरमराग गुनआठ ॥ १ ॥ चित प्रभावना भावजुत, हेय उपादयधानि । धीरज हरष प्रवनिता, भूषन पंच वखानि ॥ २ ॥ अष्ट महामद अष्ट मल, षट आयतन विशेष । तीन मूढता संजगत, दोष पचीसी एष ॥ ३ ॥ जाति लाभकुल रूपतप, वलविद्या अधिकार । * इन्हकोगरबजु कीजिये, यह मद अष्ट प्रकार ॥ ४ ॥
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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