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________________ (१०५) ....................... चौपाई। आसंका अस्थिरता बांछा। ममता दृष्टि दशा दुरगंछा। बत्सल रहित दोष परभाले। चित्तप्रभाबनामांहि नराष॥ ५ ॥ दोहा-कुगुरु कुदेव कुधर्म धर, कुगुरु कुदेव कुधर्म। ...इनकी करे सराहना, यह षडायतन कर्मः ॥ ६ ॥ :: देव मूढ़ गुरु मूढता, धर्म मूढता पोष। .. आठआठ षटतीनिमिलि,एपचीससबदोष॥ ७ ॥ ....: ज्ञान गर्व मतिमंदता; निठुर वचन उदगार। ... रुद्रभाव आलस दला, नास पंच परकार ॥ ८ ॥ ... ... लोग हासभय भोगरुचि,अनसोचथितचेव। - मिथ्या आयमकी भगति,भूषा दरसनी सेव॥ ६ ॥ . . . . . चौपाई।................ अतीचार ए पंच प्रकारा । समलकरहि समकितकी धारा ॥ दूषनभूषनगतिअनुसरनी। दसाआठसमकितकी बरनी॥१०॥ दोहा-प्रकृति सात अब मोहकी,कहों जिनागम जोई। ...:.:. जिन्हको उदै निवारिक, सम्यक दरशन होइ॥ ११ ॥ . . सवैया इकतीसा-चारित मोहकी चारि मिथ्यातकी तीनि तामें, प्रथम प्रकृति अनंतानबंधी कोहनी। बीजी महामान रस भीजी मायां भई तीजी, चौथी महालोभ दसा परिगह पोहनी॥पांचइ मिथ्यातमति छठी मिश्र परनति, सातई समें , प्रकृति समेकित मोहनी । एई षट विंग बनितासी एक कु. तियासी, सातो मोहप्रकृति कहावे सत्ता रोहनी ॥ १२॥.. छप्पय छन्द-सात प्रक्चति उपसमहि, जासु सो उपसम मंडित । सातप्रकृति छय करन, हारछायकी अखंडितासात
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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