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________________ ( १०३ ) जो मिथ्या दल उपसमे, ग्रंथ भेद बुधि होइ। । फिरिआवे मिथ्यातमें, सादि मिथ्याती सोइ ॥ ८८॥ जिनि गरंथि भेदी नही,ममता मगनसदीव। . सोअनादि मिथ्यामती,बिकल बहिर्मुखजीव॥८९॥ कोप्रथमगुणथानंयह मिथ्यामतअभिधान। अलप रूप अवबरनवू, सासादन गुन थान ॥ ९० ॥ सवैया इकतीसा-जैसे कोउ क्षुधित पुरुष खाइ खीर खांड, बोन करे पीछे के लगार स्वाद पाबे है । तैसे चाढ़ चौथे पांचएके छडे गुनथान, काहु उपसमीको कषाइ उदे आवे है ॥ ताहि समे तहां गिरें परधान दशा त्यागी, मिथ्यात अवस्थाको अधोमुखव्हे धावे है। वीच एक समे वा छ आवली प्रमान रहै, सोइ सासादन गुनथानक कहावे है।। ९१ ॥ दोहा-सासादन गुन थान यह, भयो समापत बीय । - मिश्र नाम गुन थानअब, बरनन करों त्रितीय ॥९२॥ सवैया इकतीसा-उपसमी समकितीकेतो सादि मिथ्यामती, दुहनिको मिश्रित मिथ्यात आइंगहे है। अनंतानु बंधी चोकरीको उदे नांही जामे, मिथ्यात समे प्रकृति मिथ्यात न रहेहै ।। जहां सबहन सत्यासत्यरूप समकाल, ज्ञान भाव मिथ्याभाव मिश्र धारावहहै । जाकीथिति अंतर मुहूरत वा एक समे, ऐसो मिश्र गुन थान आचारज कहहै ॥१३॥ दोहा-मिश्र दशा पूरनभई, कही यथा मति भाषि । __ अथ चतुर्थगुनथानविधि,कहोंजिनागम साषि॥ ९४ ॥ सवैया इकतीसा केई जीव समकितपाय अर्ध पुद्गल, परावर्त्त काल ताई चोखे होइ चित्त के । कोई एक अंतर
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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