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समय11.8 11
अनुक्रमणिका. ३१ सा
: जीव निरजीव करता करम पाप पुन्य, आश्रव संवर निरजरा बंध मोक्ष है || ' सरव विशुद्धि स्यादवाद साध्य साधक, दुवादस दुवार घरे समैसार कोष है ॥ - दरवानुयोग दरवानुयोग दूर करे, निगमको नाटक परम रंस पोष है ॥ ऐसा परमागम बनारसी वखाने यामें, ज्ञानको निदान शुद्ध चारितकी चोख है ॥ ३ ॥ अर्थ – मंगलाचरण, पीठिका, षटूद्रव्य, नवतत्त्व, नामावली, पृष्ठ १ ते पृष्ठ ९ पर्यंत है. अर १ जीवद्वार. पृ० १० ५ आश्रवद्वार. पृ० ४०९ मोक्षद्वार. पृ० ७८
२१
६ संवरद्वार.
४४ १० सर्वविशुद्धिद्वार.,, ८९
७ निर्जराद्वार.
४७११ स्याद्वादद्वार.
११३
२ अजीवद्वार.
33
३ कर्त्ताकर्मद्वार .,,
२५
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४ पुन्यपापद्वार. ३५ 33 ८ द्वार. ,, ६२ १२ साध्यसाधकद्वा.,, १२० अर चतुर्दश गुणस्थानाधिकार पृष्ठ १३१ ते पृष्ठ १५१ पर्यंत है.
ऐसे द्वादश द्वार हैं सो समय ( आत्मा ) के सारका कोष है । यह द्रव्यानुयोग ग्रंथ है इसमें षट् | द्रव्यका स्वरूप दिखायके, पुद्गलादि पर द्रव्यका ममत्व दूर करनेका अर स्वद्रव्य ( आत्मतत्त्व ) का | विचार करनेका उपदेश है, तथा निगम ( शुद्ध आत्मा) का नाटक है सो परम शांत रसकूं पुष्ट करनेवाला है । ऐसे परम सिद्धांतकों बनारसीदास भाषा छंदमें व्याख्यान करे है, इसिमें ज्ञानका निदान ( मूल स्वरूप अर शुद्ध चारित्रकी चोखी रीत बताय दिई है ॥ ३ ॥
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सार
नाटक
॥२॥