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________________ ARRESS % 3D - SHIRISCOSREGGEGORREGORIASISAUG अंथकी महिमा.. ... ॥ अव समयसार नाटक ग्रंथकी महिमा कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥-'. मोक्ष चलिवे शकोन करमको करे बौन, जाको रस भौन बुध लोण ज्यों घुलत है ॥ गुणको गरंथ निरगुणको सुगम पंथ, जाको जस कहत सुरेश अकुलत है। याहीके जे पक्षी ते उडत ज्ञान गगनमें, याहीके विपक्षी जग जालमें रुलत है। हाटकसो विमल विराटकसो विसतार, नाटंक सुनत हीय फाटक खुलत है ॥२॥ अर्थ-कैसा है समयसार परमागम ? जैसे उत्तम शकुनते कार्य सिद्धि होय है तैसे इस ग्रंथका अभ्यास है सो मोक्षमार्ग चलनेवाले कू कार्य सिद्धि करदेनेवाला है अर कर्मरूप कफकी जाल काढनेकुं वमन करानेवाला औषध है, इस ग्रंथके रस (रहस्य) रूपं पाणीमें पंडित लोक लवणके समान घुलत | ( गर्क होजाय ) है। यह ग्रंथ गुण (सम्यग्दर्शन, ज्ञान अर चारित्र ) का कोष है अर निर्गुण (कषाय | ह रहित ) जो मोक्ष तिसका सुगम मार्ग है, इस ग्रंथकी महिमा कहनकू इंद्रभी.समर्थ नहीं है। इस ग्रंथके 2 जे पक्षी (श्रद्धानी) है ते मनुष्य पक्षीके समान ज्ञानरूप आकाशमें उडे है, अर इस ग्रंथके जे विपक्षी (अश्रद्धानी ) है ते मनुष्य पांख रहित पक्षीके समान जगतरूप · पारधीके जालमें फसे है। जैसे सब धातुमे सुवर्ण शुद्ध है तैसे यह ग्रंथ शुद्ध है तथा इसिके अर्थका विस्तार श्रीविष्णुकुमारके विराटरूपवत् अपार है, यह ग्रंथ सुनतेही हृदयका कपाट खुले ( आत्मानुभव होय) है ऐसा यह परमागम है ॥२॥ १ श्रीविष्णुकुमारके विराटरूपकी कथा श्रावण शुद्ध पौर्णिमेकू सुनना योग्य है. AEREGRESER
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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