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________________ उपोद्घात. समय ॥ कवि त्रय नाम सवैया ३१ सा ॥प्रथम यह ग्रंथ श्रेष्ठ गणाया सर्वमान्य दिगंबरी जैन आचार्यने रचा है. प्रथम श्रीकुंदकुंदाचार्य गाथा बद्ध करे, समैसार नाटक विचारि नाम दयो है ॥ ताहीके परंपरा अमृतचंद्र भये तिन्हे, संसकृत कलसा समारि सुख लयो है ॥ प्रगटे बनारसी गृहस्थ सिरीमाल अब, किये है कवित्त हिए वोध वीज वोया है॥ शबद अनादि तामें अरथ अनादि जीव, नाटक अनादियों अनादिहीको भयो है ॥ १॥ ॐ अर्थ-श्रीकुंदकुंदआचार्यने ? विक्रम संवत् ४९ में गाथा बद्ध करके, तिसका नाम समयसार । ६ नाटक रखा है। तिन्हके परंपरा श्रीअमृतचंद्रमुनी भये, तिन्होने वि० सं० ९६२ में गाथा उपर संस्कृत टीका अनुष्टुप् छंदमें करके सुख लियो है। [ फेर पं० राजमल्ल श्रावक समयसारनाटकके जानकार 8 है भये, तिन्होने ? वि० सं० १६०५ में संस्कृत उपर बालबोध सुगम हिंदी वचनिका विस्तृत करी है.] फेर सिरीमाल बनारसी गृहस्थ भये, तिन्होने वि० सं० १६९३ में हिंदी वचनिका उपर हिंदी भाषामें की B कविता करके हृदयमें आत्मबोधरूप बीज बोया है । शब्द अनादिका है अर तिस शब्दमें अर्थहूंना ६ अनादिका है, जीव अनादिका है अर तिस जीवका ऐसा नाटकभी अनादिका भया है. मैने नवीन हूँ कछु कीया नहीं, ऐसे कवी [ बनारसीदास ] आपनी लघुता दिखावे है ॥ १॥ ॥१ ॥ १ श्रीकुंदकुंदआचार्यने विदेहक्षेत्रमें साक्षात् जिनेश्वरकी दिव्यध्वनी सुनी के ग्रंथ रचे है ताते इनके ग्रंथ सर्वमान्य हुये है. नाटका
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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