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________________ SHRI SAN 11CIPKAny - ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥ अथश्रीसमयसार नाटक भाषावधप्रारमुबारा अथ श्रीपार्श्वनाथजीकी स्तुति ॥ झंझराकी चाल ॥ सवैया ॥ ३१ ॥ करम भरमजग तिमिर हरन खग, उरग लखन पग सिवमग दरसि ॥ निरखत नयन भविकजल वरषत, हरपत अमित भविकजन सरसि ॥ मदन कदन जित परम धरमहित, सुमरत भगत भगतसव डरसि ॥ सजल जलदतन मुकुटसपत फन, कमठदलनजिन नमतबनरसि ॥ १ ॥ अर्थ-श्रीपार्थनाथस्वामी कैसे हैं ? कर्म जो मिथ्यादर्शन सोही जगतमें अंधकार तोके हरनेको खग कहिए सूर्य है अर जिन्हके पगमें उरग कहिए सर्पका लक्षण (चिन्ह) है अरमा शिवमार्ग जो मोक्षमार्ग ताके दिखावनेवाले है । अर जिन्हको नयननिकरि अवलोकन करते भव्यजीवनिकै आनंदके अश्रुपात वरषत है, प्रमाणरहित भव्यजनरूप सरोवर हरपत कहिए उझले है। कामके गर्वकू जीतनहारे है, परमधर्मकरि जगतका हितरूप है, जाको स्मरणकरते। भक्त जननिका समस्त सप्तभय भागत है । जलभन्या जलद जो मेघ तद्वत् नील जिन्हका तन कहिए शरीर है अर छमस्थपणामें धरणेंद्रने सप्तफणकी मस्तक ऊपर छाया करी है अर कमठ नामा असुरके मनकू नष्टकरनेवारे है ऐसे पार्वजिनेंद्रकू बनारसीदास नमस्कार करे है ॥१॥ ॥ अव समस्तलघु एकखर चित्रकाव्य ॥ छप्पयछंद ।। पुनःश्रीपार्श्वनाथजीकी स्तुति । अर्थ-समस्त एक जातिके लघुस्खरकरि छप्पैछंदते फेरिहू पार्थजिनेंद्रका स्तवन कहे है ।। 60 - ENCEREST
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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