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________________ समय ॥ १ ॥ सकल करम खल दलन, कमठ सठ पवन कनक नग ॥ धवल परम पद रमन, जगतजन अमल कमल खग ॥ परमत जलघर पवन, सजलघन समतन समकर ॥ परअघं रजहर जलद, सकलजन नत भवभयहर ॥ यमदलन नरकपद क्षयकरन, अगम अंतर भवजलतरन || वर सबल मदन वन हर दहन, जयजय परम अभयकरन ॥ २ ॥ " अर्थ- समस्त कर्मरूप दुष्ट दलनहारे है अर कमठ सठरूप पवनकरि नहीचलायमान होनेतैं मेरुसमान है । अर निर्मलपद जो सिद्धपद तिसमें रमनेवाले है अर जगतके जनरूप निर्मलकमल तिनं प्रफुल्लित करनेकूं खग कहिए सूर्य है । एकांतवादरूप जे परमत सोही मेघ तां विध्वंस करनें पवन है, सजलघन जो जलकाभयमेघसमान तन कहिए शरीर है। उपशमभावके करनेवाले है । पर कहिए शत्रुरूप जो अघ कहिए पापसोही रज तां मेघसमान है, समस्त जनकरि नमित है, भव जो संसार ताके भय हरनहारे है । यमकूं दलनहारे है नरकपदके क्षयकरनेवाले है, अगम कहिए अथाह अर अतट कहिए अपार ऐसे भवसमुद्रके तरऩहारे है । वर कहिएं समस्तदोपनिमैं प्रधान अर सबल कहिए वलवान ऐसा मदन कहिए काम सोही जो वन ताकें दग्ध करनेकूं हरदहन कहिए रुद्रकी अनि है, ऐसे उत्कृष्ट अभय कहिए निर्भय ताके करनहारे पार्श्वजिनेंद्र जयवंत रहो ॥ २ ॥ पुनः सवैया ३१ सा ॥ - जिन्हके वचन उर धारत युगल नाग, भये धरनिंद पदमावती पलकमें ॥ sit नाममहिमास धातु कनककरै, पारसपाखान नामी भयो है खलकमें ॥ सार. नाटक ॥ १ ॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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