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जिन्हकी जनमपुरी नामकेप्रभाव हम, आपनौं स्वरूप लख्यो भानुसो भलकमें ॥
तेई प्रभुपारस महारसके दाता अब, दीजे मोहिसाता हुगलीलाकी ललकमें ॥३॥ | अर्थ-जाके वचन हृदयमें धारणकरि सर्पका युगल एक पलमें धरणेद्रपद्मावती भए । जाके | नामकी महिमातेही पार्श्वनाम पाषाण है सो कुधातु कहिए लोहळू सुवर्ण करै है यातै जगतमें || पार्श्वपाषाण नामी कहिए विख्यात भया है । जिन्हकी जन्मपुरी जो बणारसी ताके नामके प्रभावतें हम अपनाखरूप अवलोकन कीया, जैसे अपनी भलक जो प्रभा तामें सूर्य लखिए है। तेही प्रभुपार्श्वजिनेंद्र आत्मानुभवरूप रसकेदाता अब मोहि नेत्रनिके टिमकारनेकी लीलामा-2
त्रमें साता जो आत्मीक स्वाधीन सुख... देहुं ।।३॥ अब श्रीसिद्धकी स्तुति॥छंदअडिल्ल ।।-15 sl अविनासी अविकार परमरस धाम है । समाधान सरवंग सहज अभिराम है।
शुद्धबुद्ध अविरुद्ध अनादि अनंत है ।। जगत सिरोमणि सिद्ध सदा जयवंत है॥४॥ all अर्थ-अविनाशी अर विकार रहित जो आत्मीक सर्वोत्कृष्ट रसताके धाम है । अर समस्त ।।
अंगबिबै सहज कहिए स्वाभाविक जो समाधान कहिए अनंतसुख ताकरि मनोहर है। शुद्ध कहिए समस्त दोषरहित अर बुद्ध कहिए सर्वज्ञ अर अविरुद्ध कहिए विरोधरहित अनादि । अनंत है । ते जगतके ऊपरि सिरोमणि समान सिद्धभगवान् सदाकाल जयवंत होहु ॥ ४॥18 अव श्रीसाधुकी स्तुति ॥ सवैया ३१ सा ॥
ग्यानको उजागर सहज सुखसागर, सुगुन रतनागर विरागरस भन्यो है ॥ सरनकी रीत हरै मरनको भै न करै, करनसों पीठदे चरण अनुसन्यो है ।