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________________ समय ॥२॥ AIRLIQ A सार. SIATIA RESTAURARREIRA धरमको मंडन भरमको विहंडनजु, परम नरम व्हैक करमसो लयो है ॥ ऐसोमुनिराज भुवलोकमें विराजमान, निरखि वनारसी नमसकार को है ॥ ५॥ 'अर्थ-कैसे है मुनिराज ? ज्ञानके उद्योत करनहारे है, आत्मीक सुखका समुद्र है, सम्यक्गुणं रत्ननिकी खानी है, वीतरागरूप रसका भय है। परीसहादिकंनिमें किसीका सरंन । ग्रहण नहि करे है, अपना अविनासी स्वरूप जानि मरनका भय नहीं करे है, इंद्रियनिके। विषयनितूं अपूठा होइ चारित्रकू आचरन कीया है । धर्मकू भूषित करनेकौं मंडन है, भरम जो मिथ्याज्ञान ताके विनाशने वारे है, परम दयावंत होईकै कर्मनिसू लरै है। ऐसे'गुणनिके ६ धारक मुनिराज इस पृथ्वीलोकमें विराजमान है तिनकौं अवलोकनकरि बनारसीदास नमस्कार करे है ॥ ५॥ अब सम्यग्दृष्टीकी स्तुति ॥ सवैया २३ सा ॥ भेदविज्ञान जग्यो जिन्हकेघट, सीतल चित्त भयो जिमचंदन ॥ केलिंकरे. सिव. मारगमें, जगमाहि जिनेश्वरके लघुनंदन ॥ सत्यस्वरूप संदा जिन्हके, प्रगट्यो अवदात मिथ्यात निकंदन ॥ शांतर्दशा तिनकी पहिचानि, करे करजोरि.बनारसी बंदनं ॥६॥ . ___ अर्थ-जिसके जड अर चेतनका भेदज्ञान घटमें जाग्रत भया, तिसका चित्तं समस्त नाटक. । संसारका ताप रहित चंदनवत् शीतल भया है । अर जिसकै भेदविज्ञान प्रगटभया सो पुरुष ॥२॥ मोक्षके मार्गमें केलि जो कीड़ा ताहि करे है, सो भेदविज्ञानी पुरुष इस जगतमें जिनेश्वरके **5%95%25A525251952
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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