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॥ अव कर्ता कर्म अर क्रिया ये त्रय स्वरूप कहे है ॥ दोहा ॥| कर्ता परिणामी द्रव्य कर्मरूप परिणाम । क्रिया पर्यायकी फेरनि, वस्तु एक त्रय नाम ॥७॥ all अर्थ-सर्व द्रव्यमें परिणमनेकी शक्ति है-जब द्रव्य रूपांतर करनेषं विचार करे तब ताकू ||5||
परिणामी द्रव्य कहवाय तथा परिणामीपणाळूही कर्ता कहते है, अर जब द्रव्य रूपांतर करे तब ताळू परिणाम कहवाय तथा परिणामकूही कर्म कहते है । अर जब द्रव्यके परिणाम क्रमे क्रमे फिरे तब ताकू पर्याय कहवाय तथा पर्यायही क्रिया कहते है, ऐसे कर्ता कर्म अर क्रिया ये त्रय नाम है| परंतु वस्तु एकही है ॥ ७ ॥
॥ अव कर्ता कर्म अर क्रिया इनका एकत्वपणा कहे है ॥ दोहा ।कर्ता कर्म क्रिया करे, क्रिया कर्म कर्तार । नाम भेदबहुविधि भयो, वस्तु एक निर्धार ॥ ८॥
अर्थ-कर्ता कब कहे की ? जब कर्म होनेकी क्रिया करे जैसे घट करनेळू माटी ल्यावना ताकुं| कर्ता कहिये अर क्रिया कब कहे की ? जब कर्म करने लगे जैसे मातीका घट करने लगजाय क्रिया कहिये अर कर्म कब कहे की ? जब घट पूर्ण होजाय ताकू कर्म कहिये । ऐसे नाम भेद करि बहुत प्रकार है परंतु निश्चयते करनेसे कर्त्ता, करनेसे क्रिया अर करनेसे कर्म एकज वस्तु होय है ॥ ८॥
॥ अव कर्म क्रिया अर कर्ता एकज होय है ते कहे है ॥ दोहा ।।| एक कर्म कर्त्तव्यता, करे न कर्ता दोय । दुधा द्रव्य सत्ता सु तो, एक भाव क्यों होय ॥९॥
अर्थ-यह बात तो प्रसिद्ध है की-एक कर्मकी क्रिया एकज होय है अर तिस क्रियाका कर्ता एकज होय है, पण एक क्रियाका कर्ता दोय नही होय है। यहां चेतन द्रव्यसत्ता अर पुद्गलद्रव्य सत्ता ये दोय सत्ता जुदी जुदी है, सो एक स्वभाव कैसा होय ? ॥ ९ ॥
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करनाल