SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समय॥२७॥ Re3-SE RECESSARITRAKESARIAGRA ॥ अव कर्त्ता कर्म अर क्रियाको विचार कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥ सार. एक परिणामके न करता दरव दोय, दोय परिणाम एक द्रव्य न धरत है । अ०३ एक करतूति दोय द्रव्य कबहूं न करे, दोय करतूति एक द्रव्य न करत है ॥ जीव पुदगल एक खेत अवगाहि दोउ, अपने अपने रूप कोउ न टरत है। जड परिणामनिको करता है पुदगल, चिदानंद चेतन खभाव आचरत है ॥ १० ॥ है अर्थ-एक परिणामको कर्ता दोय द्रव्य नहि होय, अर एक द्रव्य है सो दोय परिणामकू नहि * धारण करे है । ऐसेही दोय द्रव्य मिलिके एक क्रिया कबहूं नहि करे है, अर तैसेही एक द्रव्य दोय के क्रिया पण नहि करे है । ये व्यवस्था कहवा लायक है की-जीव अर पुद्गल एकमेक होय रहे है ताते । ये दोऊ द्रव्य एक क्षेत्रावगाही है, तोहूं ते आप आपने स्वभावकू कोई नहि टले है। पुद्गल जे है ते जड है सो जड परिणामका कर्ता है, अर चिदानंद है ते चेतन है सो ज्ञान स्वभावका कर्ता है ॥ १० ॥ ॥ अव मिथ्यात्व अर सम्यक्त्व स्वरूप वर्णन करे है ॥ सवैया ॥३१॥हूँ महा धीठ दुःखको वसीठ पर द्रव्यरूप, अंध कूप काहूपै निवायो नहि गयो है ॥ ऐसो मिथ्याभावलग्यो जीवके अनादिहीको, याहि अहंबुद्धि लिये नानाभांति भयो है ॥ काहू समै काहूको मिथ्यात अंधकार भेदि, ममता उछेदि शुद्ध भाव परिणयो है ॥ तिनही विवेक धारि बंधको विलास डारि, आतम सकतिसों जगत जीति लियो है ॥ ११ ॥ अर्थ-कैसा है मिथ्यात्व भाव ? महा धीठ है यामें सदा दुःख वसे है अर पुद्गल द्रव्यके समान ६ ॥२७॥ जड है, तथा जिसमें सत्यपणा नहि है तातें अंधकूप है तिस मिथ्यात्वका कोईसे निवारण नहि होय है। se
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy