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________________ समय- ॥२६॥ SHARGARERAKEKREARRANGA प्रकारते मिलाप न होय है जैसे नितंब ( मोतीका चौकडा ) कानसों जुरे है पण तिसका मिलाप * कानों कदाचित् नहीं है। ऐसो गुण अर पर्यायको विवेक जिसके हृदयमें प्रगट हुवा है, तिसका कर्मके कर्तेपणाका भ्रम नष्ट होजाय है जैसे सूर्यका उदय होते अंधकार भागे है । ऐसा भेदज्ञानी जीव ₹ जगतके जीवकुं कर्मका का दीखे है, परंतु सो रागद्वेषादि रहित शुद्ध है ताते [ भगवान् ] तिसत अकाही कह्या है ५॥ ॥ अव जीवके अर पुद्गलके जुदे जुदे लक्षण कहे है ॥ छपै छंद ॥जीव ज्ञानगुण सहित, आपगुण परगुण ज्ञायक । आपा परगुण लखे, नाहि पुद्गल इहि लायक । जीवरूप चिद्रूप सहज, पुदगल अचेत जड | जीव अमूरति । मूरतीक, पुदगल अंतर वड । जवलग न होइ अनुभौ प्रगट, तवलग मिथ्यामति लसे । करतार जीव जड करमको, सुबुद्धि विकाश यहु भ्रम नसे ॥६॥ है अर्थ-जीव जो है सो ज्ञानगुण सहित है अर आपके गुणकू तथा परके गुणकुं जाननेवाला है। * इस ज्ञायक गुणसे जीव आपके तथा परके गुण• देखे है, जीवके समान् जाननेकी अर देखनेकी ॐ शक्ती पुद्गलमें कोई काल नहि होय है । जीवका स्वयंसिद्ध चेतन लक्षण है, पुद्गलका अचेतन ( जड ) 8 लक्षण है । जीव अमूर्तीक ( अरूपी, है अर पुद्गल मूर्तीक ( रूपी ) है, इन जीवके अर पुद्गलके हूँ लक्षणमें तथा गुणमें बडा अंतर है । जबतक इन दोऊके भेदका अनुभव ( परिचय ) नहि होय है, हैं तबतक मिथ्याबुद्धीही लहलहाट करे है । अर जडरूपी कर्मको कर्त्ता जीव है ऐसे भ्रमबुद्धि रहे है, है परंतु यो अनादिकालका भ्रम है सो सुबुद्धिका प्रकाश होनेतेही नाश पावे है ॥ ६ ॥ PRESSORSOGLASI RESEOSASHASHIROSHOSHO ॥२६॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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