SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 480
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । - ROSHISHIGASHIPAAUGS RIIGIREBIRRERO अर्थ-ऐसे स्याद्वादमत प्रमाणते आत्मज्ञानका हित है । इसिका वचन सुननेसे वा अध्ययन करनेसे अज्ञानी होय तो पण पूर्ण ज्ञानी होय है ॥२८॥ स्याहादते आत्मस्वरूपका जाणपणा होय है| ताते स्याहाद महा बलवान है । मोक्षका साधक है कोई युक्ति प्रयुक्तीसे भागे नही ऐसे बाधा रहित अक्षय है अर सर्व नयमें फैलि रह्या है ताते अखंडित आज्ञा है ॥ २९ ॥ ॥ अव साध्य पदका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥जोइ जीव वस्तु अस्ति प्रमेय अगुरु लघु, अभोगी अमूरतीक परदेशवंत है। उतपनिरूप नाशरूप अविचल रूप, रतन त्रयादिगुण भेदसों अनंत है ॥ सोई जीव दरव प्रमाण सदा एक रूप, ऐसे शुद्ध निश्चय खभाव विरतंत है। स्यादवाद मांहि साध्यपद अधिकार कह्यो, अब आगे कहिवेको साधक सिद्धंत है।॥३०॥ अर्थ-जो इह जीव वस्तु है सो अस्ति प्रमेय अगुरुलघु अभोगी अमूर्तीक अर प्रदेशवंत है, जिसका नाश नहीं ताते अस्ति कहिये, प्रमाण है ताते प्रमेय कहिये, देह नही ताते अगुरु लघु कहिये इत्यादि गुणयुक्त है । अर गुणसे ध्रुवरूप है तथा गुणके पर्यायसे उत्पत्तीरूप अर विनाशरूप है, रत्नत्रयादिक गुणके भेदसे अनंतपणा लीये वते है।सोई जीवद्रव्य एकरूपज सदा प्रमाण है, ऐसा निश्चय नयसे जीवके खभावका वृत्तांत है सो साध्यपद कहिये । इसिका वर्णन स्याहाद द्वारमें कह्या ॥३०॥5 स्यादाद अधिकार यह,कह्यो अलप विस्तार अमृतचंद्र मुनिवर कहे, साधक साध्य दुवार॥३१॥ अर्थ-ऐसे स्याहाद द्वार कह्यो । अब अमृतचंद्र मुनिराज, साध्य अर साधक द्वार कहे है ॥३१॥ ॥ इति श्रीसमयसार नाटकको ग्यारमो स्याद्वाद नयद्वार बालबोध सहित समाप्त भयो॥ ११॥ GRIGLICERIASTAALIRIKISIRISIAIS
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy