SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 59 - ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐकर साथ लग्या है अर कर्मरूप मलमें व्यापि रह्यो है । ये मोहकर्म मिटनेसे भेदज्ञानका उदय होय है । कैसा है भेदज्ञान ? महारुचि जो दृढश्रद्धान (प्रतीति) ताकी निधि है, अर भेदज्ञानसे सम्यक हृदयौ । महान् उजाला होय है अर संशय दशाते न्यारा करे है । जव संशयका अभाव होय तब आत्मा स्वा स्वरूपमें स्थिर रहे है तथा अपने अनुभवके विलासळू ग्रहण करे है, अर फेरि कबहूही शरीर कर्मादिका पुद्गलको आपना नही माने है । अर ये करतूति जे भेदज्ञानकी क्रिया है सो आत्माकू जगतसे जुदा Sil भिन्न ) करे है, जैसे-अग्नि है सो पापाणवू अर कंचन• भिन्न भिन्न करे है तैसे करे है ॥ २३ ॥ ॥ अब परमार्थकी शिक्षा कथन ॥ सवैया ३१ सा ॥बनारसी कहे भैया भव्य सुनो मेरी सीख, केहूं भांति कैसेहूके ऐसा काज कीजिये | एकहु मुहूरत मिथ्यात्वको विध्वंस होइ, ज्ञानको जगाइ अंस हंस खोजि लीजिये। वाहीको विचार वाको ध्यान यह कौतुहल, योंही भर जनम परम रस पीजिये। तजि भव वासको विलास सविकाररूप, अंतकरि मोहको अनंतकाल जीजिये ॥ २४॥ अर्थ-अब शुद्ध आत्मामें स्थिर रहना सो परमार्थ है ताका क्रमसे उपदेश करे है-बनारसीदास कहे है हे भाई भव्यजीवो ? मेरा उपदेश सुनो, कोऊही भांतिसे (प्रकारसे) कैसाही होके ऐसा कार्य करिये की। एक मुहूर्त मात्रहूं मिथ्यात्वका विध्वंस हो जाय, अर ज्ञानको अंश जाग्रत हो करि हंस जो आत्मा | ताकें स्वरूपकी पहचान कर लीजिये । अर आत्मस्वरूपकी पहचान होयगी जब उसहीका विचार कर उसहीका ध्यान कर उसहीकी क्रीडा कर ऐसेही यावज्जीव आत्मानुभवरूप परम रस पीजिये। तब भव विलास ( जन्ममरणका फेरा ) अर विकार. ( राग दोष ) ते छूटैगा, अर मोहका नाश होय । || सिद्धपद प्राप्त होयगा तहां अनंत काल जीवना है इसही प्रकारे सिद्ध होय है ॥ २४॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy