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________________ समय॥१७॥ ६२- *-- २ RRऊरॐॐॐॐॐॐॐ* ॥ अव तीर्थकरके देहकी स्तुति ॥ सवैया ३१॥ साजाके देह छुतिसों दसो दिशा पवित्र भइ, जाके तेज आगे सब तेजवंत रूके हैं ॥ जाको रूप निरखि थकित महा रूपवंत, जाके वपु वाससों सुवास और लूके हैं। जाकी दिव्यध्वनि सुनि श्रवणको सुखहोत, जाके तन लछन अनेक आय ढुके हैं। तेई जिनराज जाके कहे विवहार गुण, निश्चय निरखि शुद्ध चेतनसों चूके है ॥२५॥ __ अर्थ-अब आत्मा महिमावान् होनेसे शरीरपण महिमावान् होय है तातै कविराज तीर्थकरके र र शरीररूपकी स्तुति कहे है-तीर्थकरके देहके तेजतें दशदिशा उज्जल शोभायमान होय है, अर जाके तेजके आगे समस्त तेजवंत (चंद्रसूर्यादि देवता ) छुपे है । जिसके रूपळू देखिकरि महारूपवंत ॥ इंद्रादिक देव चकित होजाय है, अर जिसके शरीरकी सुगंधते अन्य सर्व सुगंध मंदार सुपारिजातादि क मंद होय है । जाकी दिव्यध्वनि सुनि सर्वत्रके श्रवणको आनंद होत है, अर जिसके शरीरपै १००८ है सुंदर लक्षण आय ढोक रहे है । ऐसे तीर्थकर जिनराज देव है तिनके व्यवहार गुण कहे ते शरीरके K आश्रयते कहे है, अर निश्चयतै देखिये तो ये देहाश्रितगुण शुद्धआत्माके गुणते अति न्यारे है ॥ २५ ॥ जामें वालपनो तरुनापो वृद्धपनो नांहि, आयु परजंत महारूप महावल है। विनाहि यतन जाके तनमें अनेकगुण, अतिसै विराजमान काया निरमल है ॥ जैसे विन पवन समुद्र अविचलरूप, तैसे जाको मन अरु आसन अचल है ।। ऐसे जिनराज जयवंत होउ जगतमें, जाके सुभगति महा मुकतिको फल है ॥ २६ ॥ अर्थ-जिनमें बालपणा तरुणपणा अर वृद्धपणा ये तीन भेद नही है, (बालकवत् अज्ञान नही, 8 २ ०८-*-*-*-**-* ॥१७॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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