SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ AGOGISAARISHA ROSSRESAS है, अर अपना ज्ञानरूप अपूर्व धन चित्तरूप दर्पणमें देखे है। आत्म स्वरूपका व्याख्यान कहे अर भ्रमरूप मिथ्यात्व नगरकू दग्ध करे है, हृदयमें सुगुरका उपदेश धारण करे अर चित्त• स्थिरता राखे है। जगमें सर्व प्राणीका हित होय तैसे प्रवर्ते अर त्रैलोक्य पतीकी भक्ती (श्रद्धा) करे है, पुनः जन्म नहि होय तिस गती (मुक्ती ) की इच्छा धरे है ऐसे सुबुद्धीका उत्कृष्ट विलास है ॥ ४ ॥ ॥ अव ज्ञाताका विलास कहे है ॥ सर्व दीर्घ अक्षर सवैया ३१ सा ॥राणाकोसो बाणालीने आपासाधे थानाचीने दानाअंगी नानारंगीखाना जंगी जोधा है। मायावेलीजेतीतेती रेतेमें धारेती सेती, फंदाहीको कंदा खोदे खेतीकोंसो लोधा है ।। | बाधासेती हातालोरे राधासेती तांता जोरे, वांदीसेती नाता तोरे चांदीकोसो सोधा है ॥ जानेजाही ताहीनीके मानेराही पाहीपीके, ठानेवाते डाहीऐसो धारावाही बोधा है ॥ ५॥ अर्थ-ज्ञाता है सो राजा सारिखा बाणा लिये है राजा तो आपना देश साधनेमें चित्त राखे अर ज्ञानी आपने आत्म साधनमें चित्त राखे, राजा तो शाम दाम दंडादि तथा खाना जंगी लढाई करि || दुर्जनको हटावे अर ज्ञानी है सो राग द्वेषका त्यागि होय इंद्रिय दमनादि अनेक भेदरूप तपकरि । कर्मकुं क्षपावे । अथवा लुहार जैसे रेतडीसे लोहेवू घसि डारे तैसे ज्ञानी सुबुद्धीसे क्रोध मान माया अर लोभरूप वेली• छेदिनाखे, अथवा किसाण ( खेती करनेवाला ) जैसे भूमीकू खोदे धान्यमेका घास निकाले तैसे ज्ञानीहूं मिथ्यात्वकू छोडे है। अर कर्मबंधके बाधाकू जूदा करे तथा सुबुद्धिरूप स्त्रीसे स्नेह जोडे है, अर कुबुद्धीका नाता तोरे है तथा योग्य वस्तू• ग्रहण करे अर अयोग्य वस्तूकू छोडे ||७| का है जैसे सोना रूपा शोधनेवाला वस्तु शुद्ध कर सोना रूपा लेय अर केर कचरा फेकदे तैसे । अर - REA*S
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy