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________________ समय 8 अर्थ-कोई धर्मात्मा मनुष्य धर्ममें सावधान' होयके, बुद्धिरूप छेनी ( शस्त्र ) * अपने हृदयमें डार देवे है । सो छैनी हृदयमें जाय नोकरमळू अर द्रव्य कर्मकुं छेदे है, अर स्वभाव हूँ अ०९ ॥७॥ है तथा परभाव ऐसे दोय संधी (फाडा) का शोध करे है । ज्ञानी पुरुष तिस संधिके मध्यपाती होय दोय । " फाडाकू देखे है, तो तिसमें एक फाड कर्मरूपी अज्ञानमई दीखे है अर एक फाड ज्ञानरूप अमृतमई 2 दीखे है । ज्ञानी अज्ञान फाडकू छोड देय है अर ज्ञानरूप अमृत फाडामें मग्न होय है, ज्ञानी है सो इतनी सब क्रिया एक समयमें करे है ॥२॥ जैसि छैनी लोहकी, करे एकसों दोय । जड चेतनकी भिन्नता, त्यों सुबुद्धिसों होय ॥३॥ ॐ अर्थ-जैसे लोहकी छैनी है सो एकके दोय भाग करे । तैसे चेतनकी अर अचेतनकी एकता है ॐ सो भेद ज्ञानतेही होय है ॥ ३॥ * ॥ अव सुवुद्धिका विलास कहे है ॥ सर्व इस्व अक्षर सवैया ३१ सा ॥धरत धरम फल हरत करम मल, मन वच तन बल करत समरपे॥ भखत असन सित चखत रसन रित, लखत अमित वित कर चित दरपे॥ कहत मरम धुर दहत भरम पुर, गहत परम गुर उर उपसरपे॥ रहत जगत हित लहत भगति रित, चहत अगत गति यह मति परपे ॥४॥ ॥७॥ अर्थ—सुबुद्धी है सो धर्मरूप फलकू धरे है अर कर्मरूप मल• हरे है, तथा मन वचन अर8 ४ देह इनके बलकुं ज्ञानमें लगावे है। निर्दोष भोजन करे पण जिव्हा इंद्रियके स्वादमें मग्न नहि होय SANEIGREATREKK SGARHIREOGRESERNIGRESSRIGANGANAGRESSORE A RUREGkok
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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