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________________ सार. समय- . अ०९ RECEIPRESCRIMMIGRASIDERENCERes आत्माकू तथा शरीरादिकळू नीके जानकर आत्माकू माख मगज समान अर पुद्गल• तुक फोल समान माने हे, ऐसी ऐसी डाही बाता करे है सो सम्यक् धाराकुं वहनारा बोधा ( ज्ञाता ) है ॥ ५॥ ॥अब ज्ञाताका पराक्रम चक्रवतीसेहू अधिक है सो कहे है । सवैया ३१ सा - जिन्हकेजु द्रव्य मिति साधत छखंड थीति, विनसे विभाव अरि पंकति पतन हैं ॥ जिन्हकेजु भक्तिको विधान एइ नौ निधान, त्रिगुणके भेद मानो चौदह रतन है ॥ जिन्हके सुबुद्धिराणी चूरे महा मोह वज्र, पूरे मंगलीक जे जे मोक्षके जतन है॥ जिन्हके प्रणाम अंग सोहे चमू चतुरंग, तेइ चक्रवर्ति तनु धरे ये अतन है ॥ ६॥ अर्थ-चक्रवर्ती राजा छह खंड पृथ्वी साध्य करे है अर ज्ञानीहू पृथ्वीतलके छह द्रव्यङ्घ प्रमाण ॐ अर नयते साध्य करे है, चक्रवर्ती शत्रुका क्षय करेहै तैसे ज्ञानीहू राग द्वेषका क्षय करे है। चक्रव६ीकू नव निधि अर चौदह रत्न है, तैसे ज्ञानीकुं नवधा भक्तिरूप नवनिधि अर रत्नत्रयरूप चौदह रत्न 5 हूँ है। चक्रवर्तीकी पट राणी दिग्विजयके अवसर राज्याभिषेकके समयमें चक्रवर्तीके सन्मूख दो अंगुहै लीसे रत्नका चूर्ण करि मंगल चौक पूरे है, तैसे ज्ञानीके सुबुद्धीरूप स्त्रीहूं मोक्षके अर्थि निबड मोह* कर्मका सहज चूर्ण करे है । चक्रवर्ती• हत्ती घोडे बैल अर पायदल चतुरंग सेना है तैसे ज्ञानीकुं। प्रत्यक्ष परोक्ष प्रमाण अर निक्षेप यह चतुरंग सेना है, चक्रवर्ती देह धरे है अर ज्ञानी है सो देहते। ६ विरक्त है ताते देह होतेहू देह रहित है ॥६॥ ॥ अव ज्ञानी नव प्रकारे भक्ती करे है सो कहे है ॥ दोहा ।* श्रवण कीरतन चितवन, सेवन वंदन ध्यान । लघुता समता एकता, नौधा भक्ति प्रमाण ॥७॥ ॥७९॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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