SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( दयारूप ) है । अर मध्यम मनुष्यका स्वभाव नालियर समान बाहिर कठोर ( अभिमानी ) अर अंतर कोमल है । अधम ( कनिष्ट ) मनुष्यका स्वभाव बोरफल समान अंतर कठोर अर बाहिर कोमल है । अधमसे अधम मनुष्यका स्वभाव सुपारी समान अंतर कठोर अर बाहिरहू कठोर है ॥१७॥ ॥ अव उत्तम मनुष्यका स्वभाव कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥ कचिसों कनक जाके नीचसों नरेश पद, मीचसि मित्ताइ गुरुवाई जाके गारसी ॥ जहरसी जोग जाति कहरसि करामति, हहरसि हौंस पुदगल छबि छारसी ॥ जालसों जग विलास भालसों भुवन वास, कालसों कुटुंब काज लोक लाज लारसी ॥ सीस सुजस जाने वीसों वखत माने, ऐसि जाकि रीत ताहि बंदत बनारसी ॥ १८ ॥ अर्थ — जो सुवर्णकूं कीचडसमान आत्माकूं मलीन करनेवाला जाने है अर राज्यपदकूं नीच समान मंद बधाय नरककूं पोचावनेवाला माने हैं, लोकके मित्राइकूं मरण समान अचेतपणा करणारा समझे है अर अपनी कोई बढांई करे तिसकूं जो गाली समान माने है । जो रसकूपादिक जोग जातीकूं। जहर पीवने समान अर मंत्रादिकके करामतीकूं तीव्र वेदनाके दुःखसमान जाने है, जगतके मायारूप विलासकूं जाल समान अर घरवासकूं बाणकी टोक समान समझे है, हौसकूं अनर्थकारी अर | शरीरके कांतिकुं राख समान देखे है । संसार कार्यकूं काल समान अर लोक लाजकूं मुखके लाळ - | समान जाने है । अपने सुयशकूं नाशिका के मल समान अर भाग्योदयकूं विष्टा समान समझे है, ऐसी जाकी रीत है तिनकुं बनारसीदास वंदना करे है ॥ १८ ॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy