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________________ समय ॥६७॥ ॥ अव मध्यम मनुष्यका स्वभाव कहे है । सवैया ३१ सा ॥जैसे कोउ सुभट स्वभाव ठग मूर खाई, चेरा भयो ठगनके घेरामें रहत है ॥ ठगोरि उतर गइ तबै ताहि शुद्धि भइ, पयो परवस नाना संकट सहत है॥ तैसेहि अनादिको मिथ्याति जीव जगतमें, डोले आठो जाम विसराम न गहत है। ज्ञानकला भासी तब अंतर उदासि भयो, पै उदय व्याधिसों समाधि न लहत है ॥१९॥ ६ अर्थ-जैसे सुभटकू कोई ठगने जडीकी मुळी खुवायदीनी, ताते सो सुभट तिस ठगका चेला ६ होय हुकुममें रहे है । अर मूळीका अमल उतर जाय तब सुभट अपने शुद्धिमें आवे है अर हैं * ठगईं दुर्जन जाने है, परंतु ठगके वस हुवा है ताते नाना प्रकारके संकट सहे है। तैसेही अनादि । B कालका मिथ्यात्वीजीव है सो मिथ्यात्व स्वभावते अचेत होय, आठौ प्रहर संसारमें डोले है विश्राम 13 लेय नही । अर भेदज्ञान होय तब अंतरंगमें उदासी रहेहै, परंतु कर्मोदयके व्याधीसे समाधानपणा नहि 5 18 पावे सो मध्यम पुरुष है ॥ १९॥ ॥ अव अधम मनुष्यका स्वभाव कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥जैसे रंक पुरुषके भावे कानी कौडी धन, उलूवाके भावे जैसे संझाही विहान है ॥ कूकरके भावे ज्यों पिडोर जिरवानी मठा, सूकरके भावे ज्यों पुरीष पकवान है ॥ वायसके भावे जैसे नींबकी निंबोरी द्राख, बालकके भावे दंत कथा ज्यों पुरान है। हिंससके भावे जैसे हिंसामें धरम तैसे, मूरखके भावे शुभ बंध निरवान है ॥ २०॥ अर्थ-जैसे दरिद्री मनुष्यकू कानी कौडी धनसमान. प्रीय लागे है, अथवा जैसे घुबडकू प्रभात- AGROGRESHREGARHIRKOREIGRIGANGRECEMORRORE ॐ अवसर ॥६७॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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