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________________ समय सार अ०८ RISROCRACKROACAGAROSPRECORIES ₹ मैं इसिकू सुखी करूं, मैं इसिळू दुखी करूंहूं ऐसे अज्ञानी मानिलेत है । इसही अहंबुद्धीसे भ्रमरूप * भूल नहि विनसे है, अर येही मिथ्याधर्म है सो मूढळू कर्मबंधका कारण होय है ॥ १५ ॥ पुनः जहांलों जगतके निवासी जीव जगतमें, सबे असहाय कोउ काहुको न धनी है। जैसे जैसे पूरव करम सत्ता बांधि जिन्हे, तैसे तैसे उदै अवस्था आइ बनी है ॥ ___ एतेपरि जो कोउ कहे कि मैं जिवाउ मारूं, इत्यादि अनेक विकलप बात घनी है। - र सोतो अहंबुद्धिसों विकल भयो तिहुंकाल, डोले निज आतम शकति तिन्ह हनीहै॥१६॥ हूँ अर्थ-जबलग जीव जगतमें रहे है, तबलग असाहायपणे रहें है कोई काहूका धनी नही है। जिसने जैसे जैसे पूर्व कालमें कर्मकी सत्ता बांधी है, तैसे तैसे जीवकू उदय आय फल देवे है तिसर कर्मके फलकू कम जादा करनेकू कोउ समर्थ नहीं है। ऐसे होतेहू कोऊ कहे मैं याकू जिवाऊं अर * मैं याकू मारूं, इत्यादि अनेक प्रकारके बातका विकल्प करे है । ताते इस अहंबुद्धीसे विकल होय * तीन कालमें डोले है, अर स्व आत्माके ज्ञानशक्तीकू हने है ॥ १६ ॥ - : ॥अब उत्तम मध्यम अधम अधमाधम इन जीवके स्वभाव कहे है॥ सवैया ३१ सा ॥उत्तम पुरुषकी दशा ज्यौं किसमिस द्राख, बाहिर अभिंतर विरागी मृदु अंग है ॥ मध्यम पुरुष नालियर कीसि भांति लीये, बाहिज कठिण हिए कोमल तरंग है। अधम पुरुष बदरी फल समान जाके, बाहिरसों दीखे नरमाई दिल संग है ॥ अधमसों अधम पुरुष पूंगी फल सम, अंतरंग बाहिर कठोर सरवंग है ॥ १७॥ ॥६६॥ अर्थ-उत्तम मनुष्यका खभाव किसमिस(द्राक्षा)समान अंतरडू कोमल अर बाहिरहू कोमल %3Dfotho
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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