SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___ अंतर सुदृष्टिसों निरंतर विलोके बुध, धरम अरथ काम मोक्ष निज घटमें॥ साधन आराधनकी सोंज रहेजाके संग, भूल्यो फिरे मूरख मिथ्यातकी अलटमें॥१४॥ अर्थ-वस्तुके स्वभावकू यथार्थपणे जानना सो धर्मका साधन है, अर षटू द्रव्यकू भिन्न भिन्न जानना सो अर्थका साधन है । आशा रहित निराश पद ( निस्पृहता ) • ग्रहण करणा सो कामका साधन है, अर आत्मस्वरूपकी शुद्धता प्रगट करना सो मोक्षका साधन है। ऐसे धर्म अर्थ काम अर मोक्ष ये चार पुरुषार्थ है सो, ज्ञानी अपने हृदयमें अंतर्दृष्टीसे देखे है । अर अज्ञानी है सो चार 5 पुरुषार्थ साधनकी अर आराधनकी सामग्री अपने संग होतेहूं तिसकू देखे नही अर मिथ्यात्वके अलटमें 18 बाहेर धूंडता फिरे है ॥ १४ ॥ ॥ अव वस्तूका सत्य स्वरूप अर मूढका विचार कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥तिहुं लोकमांहि तिहुं काल सब जीवनिको, पूरव करम उदै आय रस देत हैं। कोउ दीरघायु धरे कोउ अल्प आयु मरे, कोउ दुखी कोउ सुखी कोउ समचेत है। याहि मैं जिवाऊ याहि मारूंयाहि सुखी करुं, याहि दुखी करु ऐसे मूढ मान लेत है। याहि अहं बुद्धिसों न विनसे भरम भूल, यहै मिथ्या धरम करम बंध हेत है ॥१५॥ Mail अर्थ-तीन कालमें तीन लोकके सब जीवनिळू, पूर्व कृतकर्म उदय आय फल देवे है । तिस कर्मफलते कोई दीर्घ आयुष्यी होय है अर कोई अल्प आयुष्य भोगि मरे है, कोई दुःखी है कोई सुखी है अर कोई समचित्ती है। ऐसे होतेहू कोई मूढ प्राणी कहे मैं इसिकू जिवाउं, मैं इसिकू मारूं,
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy