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________________ समय ॥५०॥ SCARROR% अ०७ ERESIRESSAGREEMERGRICS ... . ॥ अव. जीवके शयन दशाका स्वरूप कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥काया चित्र शालामें करम परजंक भारि, मायाकि सवारि सेज चादर कलपनाः॥. शैन करे चेतन अचेतनता नींद लिये, मोहकी मरोर यहै लोचनको ढपना ॥. है. उदै बल जोर यहै श्वासको शबद घोर, विषै सुख कारीजकि दोर यहै सपना ॥ ॐ ऐसे मूढ दशामें मगन रहे तिहुं काल, धावे भ्रम जालमें न पावे .रूप अपना ॥१३॥ ॐ अर्थ-देहरूप महल है तिसमें कर्मरूप विस्तीर्ण पलंग है, तिस ऊपर मायारूप सेज (गद्दी ) हूँ पसारी है अर मनकी कल्पनारूप चादर है । ऐसे गहन सामग्रीमें आत्मा शयन करे है तहां स्वस्व-है ६ रूपकी भूलरूप नींद लेय है, तिस नीदमें मोहरूप लोचनका ढकना है। अर पूर्व कर्मके उदयका है ₹ बलरूप श्वासका घोरना है, तथा विषय सुखके कार्योंकू दौडना येही खप्न है। देहरूप महलसे विषय है सौख्यरूप स्वप्न पर्यंत जो स्थिति कही इसीकाही नाम शयन दशा अथवा मूढ दशा है हे शिष्य ? संसारी जीव है सो ऐसे मूढ दशामें तिहुं काल मग्न हो रहा है, अर भ्रम जालमें दौडता फिरे है परंतु ॐ अपने आत्माके स्वरूपकू नहि देखे है ॥ १३ ॥ ॥ अव जीवके जाग्रत दशाका स्वरूप कहे है । सवैया ३१ सा ॥चित्रशाला न्यारि परजंक न्यारी सेज न्यारि, चादरभि न्यारि इहांझुठी मेरी थपना ॥ अतीत अवस्था सैन निद्रा वाहि कोउ पैं, न विद्यमान पलक न यामें अब छपना । श्वास औ सुपन दोउ निद्राकी अलंग बूझे, सूझे सब अंग लखि आतम दरपना ॥ सागि भयो चेतन अचेतनता भाव छोडि, भाले दृष्टि खोलिके संभाले रूप अपना ॥१४॥ IRCREARRIGIGANGRECRIGORIGINGREARRICS ॥५०॥
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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