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________________ अर्थ — जे जीव मिथ्यात्वं छोडे विना सम्यक्तकी इच्छा करे अर सम्यक्त विना ज्ञानकी प्राप्ति माने है । अथवा ज्ञानविना चारित्र धारण करे तथा चारित्र विना मोक्ष पद चाहें अर मोक्ष विना आपकूं। सुखी कहे है ते जीव मूढमें मुख्य महामूढ है ॥ १० ॥ ॥ अव गुरु उपदेश करे पण मूढ नही माने तिस ऊपर चित्रका दृष्टांत कहे है ॥ सवैया ३१ सा ॥ - जगवासी जीवनिसों गुरु उपदेश करे, तुझे इहां सोवत अनंत काल वीते है ॥ जागो है सचेत चित्त समता समेत सुनो, केवल वचन जामें अक्षरस जीते है | आवो मेरे निकट बताउं मैं तिहारे गुण, परम सुरस भरे करमसों रीते है ॥ ऐसे बैन कहे गुरु तोउ ते न धरे उर, मित्र कैसे पुत्र किघो चित्र कैसे चीते है ॥ ११ ॥ अर्थ — जगवासी जीवनिकं सद्गुरु उपदेश करे है, अहो संसारी जीव हो ? तुझे अनंतकाल हो गये इस जगतमें मोह निद्राविषै सूते हो । अबतो जागो अर चित्तमें सचेत होयके समतासे केवली भगवान् का हितकर उपदेश सुनो, तिसमें आत्मानुभवका मोक्षोपदेश है । हे भव्य ? तुम मेरे पास आवो तुमको मैं परम रसते भरे अर कर्मते रहित ऐसे आत्माके गुण बताउंहूं, इस प्रकार सद्गुरु कहे तोहूं संसारी जीव चित्तमें धरे नही, मित्रके पुत्र समान अथवा चित्रके मनुष्य समान कार्य करनेमें असमर्थ होय है ॥ ११ ॥ 1 ऐतेपर पुनः सद्गुरु, बोले वचन रसाल । शैन दशा जाग्रत दशा, कहे दुहूंकी चाल ||१२|| अर्थ — पुनः सद्गुरु दयाल होके बोले हे शिष्य ? तुमकूं शयन दशाका अर जाग्रत दशाका स्वरूप कहूंहूं ॥ १२ ॥ T
SR No.010586
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit, Nana Ramchandra
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages548
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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