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|| अर्थ हे शिष्य ? आत्माकू जब सम्यज्ञान पावे है तब देहरूप मंदिर, कर्मरूप पलंग, मायारूप
शैय्या, कल्पनारूप चादर अर आत्माका शयन ये सर्व न्यारो तथा झूठ दीखने लग जाय है । अर अतीत कालमें शयन दशामें निद्रा लेनेवाला कोई दूजा रूप में मैं था, पण अब वर्तमान कालमें एक पलकभी इस निद्रा नहि छिपूगा । कर्मके उदयका बलरूप श्वासका घोर अर विषयसौख्यरूप स्वप्न येही स्वस्वरूपके भूलरूप नींदके संयोगते दीखे है, अब मेरेकू सम्यक्ज्ञान भया है ताते ज्ञानरूप आरसेमें आत्माके समस्त गुणरूप अंग दीखे है । ऐसे अचेतनरूप निद्रा आत्मा छोडे है, तब ज्ञानरूप दृष्टि खोलिके अपने आत्माके स्वरूपळू देखे है ॥ १४॥
॥ अव शयन दशाका अर जाग्रत दशाका फल कहे है ॥ दोहा - इहविधि जे जागे पुरुष, ते शिवरूप सदीव । जे सोवहि संसारमें, ते जगवासी जीव ।। १५॥
जो पद भौपद भय हरे, सो पद सेउ अनूप । जिहि पद परसत और पद, लगेआपदा रूप ॥ १६॥ 5 अर्थ-ऐसे जे जीव आत्मानुभव करके जाग्रत भये है, ते सदा मोक्ष स्वरूपी ही है । अर जे
अचेत होके संसारमें सोवे है, ते जगतमें सदा जन्म मरण करते फिरे है ॥ १५ ॥ आत्मानुभव पद है 8 ते संसारपदके भय हरे है, सो अनुपम् आत्मानुभव पद सेवन करहूं । तिस पदका स्पर्श होतेही, अन्य समस्त इंद्रादिकपद आपदा ( भय ) रूप लागे है ॥ १६ ॥
॥ अव संसारपदका भय तथा झूटपणा दिखावे है ॥ सवैया ३१ सा ।।जब जीव सोवे तव समझे सुपन सत्य, वहि झूठ लागे जब जागे नींद खोइके ॥ जागे कहे यह मेरो तन यह मेरी सोज, ताहुं झूठ मानत मरण थिति जोइकें ।
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