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________________ पं० सत्यनारायण कविरत्न , वरदास ने औषधि देकर सत्यनारायण की जीवन-रक्षा की थी। इसके बाद ही सत्यनारायण की मा वृद्ध बाबाजी की शरण मे रहने के लिये, धाँधूपुर चली गई थी। बाबाजी ने ही सत्यनारायण को पढाया-लिखाया था अतएव सत्यनारायण उनके वहुत ऋणी थे। "मर्यादा" कार्यालय प्रयाग से, २३-१-१९११ के अपने पत्र मे सत्यनारायण ने बाबाजी को लिखा था--"मै भाग नही आया हूँ, न मै आपकी आज्ञा का उल्लंघन करके आया हूँ। मै भला किस बात पर आपकी सेवा से विरत होता। हाय । इस शरीर ने आपको जन्म से दुख-ही-दुःख दिये है; और अब भी इसी के कारण आप सुख से सो भी नही सकते । आपके अपराध और मै क्षमा करूँ ! हरे-हरे ।। आपने जो उपकार इस शरीर के साथ किया है उसको क्षण-मात्र को भी भूल जाने से "नहि निस्तार कल्प सतकोटी" । जब तक शरीर मे प्राण है, यह सत्यनारायण आपही का सेवक है-आपके ऋण से कभी कल्पान्त मे भी उऋण नही हो सकता। ___इसके बाद इसी पत्र मे सत्यानारायण ने सुखदास, द्वारिका, जानकी चिरंजी, घुरेराम, रामजीत, जौहरी, भवानी, गोबिन्दा इत्यादि ग्रामीण मित्रो से प्रार्थना की थी कि आप लोग ऐसा यत्न करें जिससे बाबाजी कोई सोच न करे। ___इस पत्र से प्रकट है कि बाबाजी के लिये सत्यनारायण के हृदय में कितनी श्रद्धा थी। जुलाई सन् १९१२ मे बाबा रघुवरदास का देहान्त हो गया। उस समय सत्यनारायण को अत्यन्त दुःख हुआ था। ___बाबाजी की मृत्यु के समय समीपवर्ती ग्रामो के ब्राह्मणो मे फूट फैली हुई थी। उस समय सत्यनारायण ने पचो के नाम जो चिट्ठी लिखी थी वह नीचे उद्धृत की जाती है श्री श्रीमान् मेरे दुर्भाग्य से मेरे आराध्यचरण परमपूज्य गुरुदेव श्री ६ युक्त रघुबरदासजी का देवलोक होगया है। उनके त्रयोदश की तिथि असाढसुदी
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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