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________________ हिन्दू-विश्वविद्यालय के लिये अपील ५५ प्रति पद पावन हिय-हरसावन भावन परम पियारे । मजु मनोहर मधुर मालवी भारत मुख उजियारे । धर्म धैर्य अवतार नृपतिवर दरभगा भुवपाला । ब्रिटिश मान्य अरु नत स्वदेश हित अनुपम दीनदयाला ॥ जासो ये पाहुने हमारे निज श्रम को फल चाखें । पूरन होय सकल विधि सो तिन उत्तम हिय अभिलारे ।। सकल ओर 'अभ्युदय' सूर्य की किरन माल परकासे । हृदय सरस सर ओज भरे नित मोद सरोज निकालै ॥ जिमि बसन्त के राज मुदित मन वृच्छावलि चहुँ फूलें। नेह निरन्तर मगन रहै सब निज पतझड़ दुख भूलें। तिमि सुठि सुजन रसाल फरें मृदु मंजु मजरी छावें । उपकृत मधुप रसिक गुजारत तिनको सुयश सुनावै ॥ सद्विद्या रुचि लता लहलही तिनहिय सो लिपटावै । दान सुफल भारनि सों लचि लचि भाव विनीत जनावै ॥ लहि आश्रय डहडही डार जो देश-भक्त पिक बोलें। धर्म कर्म उपदेश ध्वनी करि प्यारी करहि कलोले । निरमल पर उपकार तरंगनि तरल तरग सुहावें। विद्या विनय विवेक प्रकृति छबि निज वैभव अधिकावै ॥ सुन्दर ज्ञान प्रभाव बहुरि जिय मे आनद जगावै। दुख को हो बस अन्त सवै विधि शोभा मनहि लुभावें ॥ परमपिता जगदीश बनावी हमहि स्वधर्म-परायण । यही सदा माँगत बिनवत प्रभु तुम सो सत्यनारायण ॥ बाबा रघुबरदास की मृत्यु कहा जाता है कि जब सत्यनारायण बाल्यावस्था में बहुत बीमार हो गये थे और उनकी असहाया अनाथ मा निराश हो गई थी, तब बाबा रघु
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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