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________________ विशप डरैण्ट की सम्मति ४५ strong personal regard for him as an earnest highminded student with a delightful enthusiasm for his own subject, Sanskrit. " अर्थात् “सत्यनारायण आगरे के सेण्ट जान्स कालेज मे कई बर्ष तक मेरे शिष्य रहे थे । मुझे उनका अच्छी तरह स्मरण है। मेरे हृदय में उनके लिये बडा प्रेग था; क्योकि वे एक उद्योगी और उदार चरित्र विद्याथी थे और अपने विषय सस्कृत के लिये उनके हृदय मे आनन्द-दायक उत्साह था।" सत्यनारायण का जिक्र करते हुए सैण्टजान्स कालेज के प्रिन्सिपल रैवरैण्ड केनन डेविस साहब ने अपने २७ फर्वरी १९१६ के पत्र में लिखा था-- One whose literary gift it was not in my power to appreciate, but whosc sweetness of character no one could fail to admie's ___ अर्थात् 'यद्यपि उनकी साहित्य-सम्बन्धी योग्यता के मर्म या महत्त्व को समझना मेरी सामर्थ्य के बाहर था, लेकिन कोई भी उनके स्वभाव को मधुरता की प्रशसा किये विना नहीं रह सकता था।" __ सत्यनारायणजी के एक अन्य अध्यापक साहित्योपाध्याय श्री प० गणेशीलाल सारस्वत' लिखते है -- "आपने "सरस्वती' में श्रीयुत बदरीनाथ भट्ट के लिखे हुए लेख मे पढा होगा कि उसने सैण्ट पीटर्स कालेज आगरा से एफ० ए० पास किया था। वहाँ उसको सस्कृत पढ़ाने के लिये प्रिसिपल साहब ने मुझे नियत कर लिया था। वहाँ वर्ष-भर मैने उसे एफ ० ए० कोर्स की संस्कृत पढाई थी। उसी वर्ष वह उत्तीर्ण होगया । उस समय प्रसन्न होकर उसने मुझसे कहा था-- पण्डितजी, और लोग तो विद्यार्थियो को केवल पढाते ही है; परन्तु आप पढाने के साथ ही साथ उनके उत्तीर्ण होने के लिये परमेश्वर से प्रार्थना भी किया करते है | कई वर्ष मै इस कक्षा मे सेण्ट जान्स कालेज से अनुत्तीर्ण होरहा था । आपसे पढकर यहाँ उत्तीर्ण होगया ।"
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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