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________________ प० सत्यनारायण कविरत्न जबलो इङ्गलिस भाषा को अर्गलपुर आदर । जबलो सुठि सञ्जोन्स पुण्य कोलेज उजागर ॥ जवलो सत्य कृतिज्ञ-भाव उर बास लहैगो । तव लो तुम्हरो नाम यहाँ पै अटल रहेगो ।। सुषि आवेगी सरल प्रकृति प्रिय परम तिहारी। होगी कैसी दशा देखिये हृदय बिचारी। आप चले निज देश हमे सोप्यो किहि हाथा। जो सब भॉति हमेस देइगो हमरो साथा ।। सब प्रकार सो हर्ष, करक बस करकत यही हमारे । मिलि तुमसो नित हाय | बिलग अब तुमको करहि पियारे ॥ तुमहि बताओ कौन भॉति हम धीरज हिय मे धारै । करिके कठिन हृदय निज कैसे तुम्हरी सुधहि बिसाएँ। होत करै सन्ताप कहा विधि यह विधि प्रवल रचाई। जाउ आप सन्तोष करै हम याही में सुधाई ॥ यद्यपि प्रेमीजन प्रेमी को परवस है के त्यागे । परि उमङ्ग बस निज उर ताकी उन्नति मे अनुरागे । यही सोचि हम तुमको प्यारे करत बिदा सुच पाई । समाचार निज तुमहि पठावन चहियतु नित सुग्वदाई ।। तव कर सो पल्लवित सुखद अति जो अनुपम अलबेली । छई कलित कोलेज कीति की कोमल बेलि नवेली ॥ जापै अचल नैम सो पूरण प्रेम रसहिं बरसैयो। सुधि-बुधि जाकी त्यागि पियारे जनि जाको तरसैयो । अधिक निवेदन करहि कहा तुम स्वयं चतुर गुणवाना । सुमिरि पुरातन प्रीति-नीति नित सब को धरियो ध्याना। श्री मिसेज़ हेथोथवेट अरु तुम को सुख सम्माना । सत्य सनेह सुजस आयुस सुत देहि ईश भगवाना ॥ -सत्यनारायण
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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