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प० सत्यनारायण कविरत्न
श्रीहरिः श्रीयुत सद्गुन सदन सुभग सब भॉति सुहावन । मित्र एल० वी० जोन्स मृदुल मञ्जुल मन-भावन ।। तव उदार गम्भीर प्रेम-पावन--रुचिराई। मुख सो बरनि न जाई प्रिय मन ही मन भाई॥ तब सुचि सोहनि सरल प्रकृति की सुधि आवेगी। मनमोहनि जो अवै वुही पुनि तरसावेगी । कछुक दिनन के हिलन-मिलन सुन्दर बोलनसो । लोल नेहमय लता लहलही लिपटति मनसो । बिरह-बीजुरी गिरै अचानक जो कहें आई। जात नवेली अलबेली बेली मुरझाई ॥ अरु हिय तरु सतप्त होत अति जा अधात सों। सूखिजात चित-चिन्ता टपकति पात-पात सो॥ अटल प्रकृति नियमानुसार जो दशा भई है। सो सब जिय जानत प्रियवर । नहिं जाति कही है। लहि तव सुमिरन मधुर सघन घन की बरसाए । पिय तरु फूलहि फरहि अङ्कभरि नेहलता ए॥ बिसरैयो जनि जोन्स निरन्तर रस बररीयो। सरसैयो नवनेह, कुशलमय पत्र पठेयो॥ निरत नागरी उन्नति में अपनो चित दीजी। या अबलहि उद्घारि मुदित निरमल यश लीजी ॥ ईश देहि तोहि शक्ति भक्ति नित निज चरनन की। तिनसो तब मन कसै शृङ्खला--रति सुवरन की ॥ आरत भारत शुभचिन्तक कर्तव्य-परायण । होह, सदा आशीस देत यह सत्यनरायण ॥
सत्यनारायण धाँधूपुर---आगरा