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अग्रेजी-अध्ययन
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"देश-सेवा चारु उन्नति चातुरी सुविचार । व्यापार प्रेम पसार अरु नय नागरी परचार ।। सत्काव्य औ कल कला कौशल करनको विस्तार ।
कर्तव्य जानि “स्वदेश-बाधव" को भयो अवतार॥" सन् १९०५ मे "स्वदेश-बान्धव" के मुख-पृष्ठ पर यह पद्य छपता भी रहा । सत्यनारायणजी "स्वदेश-बावव' के पद्य-विभाग का सम्पादन भी करते थे।
श्रीयुत चतुर्वेदी पं० रामनारायण मिश्र से परिचय
सन् १९०४-०६ मे चतुर्वेदी श्री रामनारायण मिश्र आगरे मे थे । उनको हिन्दी-कविता करने का शौक था। मिश्रजी के प्रभाव से सत्यनारायणजी ने अपनी कविता मे अग्रेजी ढग के अनुप्रास लाना प्रारम्भ किया था। काश्मीर-सुषमा उन दिनो नयी निकली थी। उसी शैली पर बसत व पावस की कविताएँ रची गयी थी। चतुर्वेदी पं० द्वारकाप्रसाद शर्मा ने “राघवेन्द्र" भी प्रयाग से उसी जमाने मे निकाला था। उसमे कभी-कभी सत्यनारायणजी की कविता भी छपा करती थी।
रैवरैण्ड एल० वी० जोन्स को हिन्दी पढ़ाना जिन दिनो सत्यनारायणजी मेण्ट जोन्स कालेज में पढ़ते थे, उन दिनो वे एक एग्लोइण्डियन सज्जन को हिन्दी पढाते थे। पीछे ये महाशय ढाका के बैप्टिस्ट मिशन में काम करने लगे। जब इन्होने रैवरैण्ड डेविस (प्रिसपल सेण्ट जान्स कालेज, आगरा) के पत्र मे सत्यनारायण की मृत्यु का समाचार पढा तो डेविस साहब को अपने ५ फरवरी सन् १९११ के पत्र में लिखा था -
“First let me say how grieved I am over the news you send. I discovered for my self, ten years ago, some of the worth of the Late Pandit and we became very