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________________ ३४ पं० सत्यनारायण कविरत्न को ११ बजे सवेरे रावतपाड़े मे मुझसे आकर मिलो। हम समझते है, कि सत्यनारायण को द्विवेदीजी के दर्शन करने का सौभाग्य पहली जनवरी सन् १९०४ को ही प्राप्त हुआ था । निस्सन्देह द्विवेदीजी जैसे साहित्यमहारथी का प्रभाव सत्यनारायण के हृदय पर अवश्य पढ़ा होगा । सत्यनारायणजी की मृत्यु के अनन्तर द्विवेदीजी ने 'सरस्वती' मे लिखा था--- " सत्यनारायणजी से हमारा प्रथम परिचय उस समय हुआ था, जब वे ऐण्ट्रेस क्लास में पढते थे । पेट की प्रेरणा से जब-जब हमे आगरा जाना पडता था, तब-तब वे मिलते थे । खबर पाते ही हमारे ठहरने के स्थान पर आ जाते थे । दिन-दिन भर साथ रहते थे । ताजगञ्ज के पास अपने गाँव भी एक बार वे हमे ले गये थे । इनका असामयिक निधन वडी दुखदायिनी घटना है ।" सत्यनारायण की कविता कभी-कभी 'सरस्वती' में छपा करती थी । इनकी 'वन्देमातरम्' शीर्षक कविता के विषय में आचार्य द्विवेदीजी ने इन्हें अपने २०१२/०५ के पत्र मे लिखा था :-- "नमस्कार बन्देमातरम् पहुँचा | कविता बडी ही मनोहर है । थैंक्स -- ऐसे ही कभी-कभी लिखा कीजिये । और सब कुशल है । भवदीयमहावीरप्रसाद" 'स्वदेश - बांधव' से सम्बन्ध जितने नवयुवक 'स्वदेश - बाघव " द्वारा हिन्दी लिखने की ओर आकषित हुए, उतने बहुत कम पत्रो द्वारा हुए होगे । यह पत्र स्वदेशी आन्दोलन युग 'मे आगरा से निकाला गया था । इसके लेखों तथा कविताओं में “स्वदेश - बाधव" का मोटो भी सत्य के देशभक्ति के भाव भरे रहते थे । नारायण का बनाया हुअथा ।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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