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________________ अग्रेजी - अध्ययन पुस्तक के अन्त मे लिखा था :-- निकट आगरे नगर के, धाधूपुर है ग्राम । मुफीदाम विद्यार्थी, सत्यनरायन नाम ॥ हरि जस रसिक सुजान हित, करी विनय चित धारि । होय शब्द जो दोषयुत, लीजो सुमति सुधारि ॥ २३ उन्ही दिनो पण्डित भीमसेनजी आर्यसमाज को छोडकर सनातनधर्मी बन गये थे । आगरे मे भी वे पधारे थे और सनातनधर्मसभा मे उनके व्याख्यान हुए थे । सत्यनारायणजी ने उनके व्याख्यानो का वृत्तान्त पद्यो मे लिखा था और प० भीमसेनजी के अभिनन्दन के लिए निम्नलिखित पद्य बनाये थे मण्डो सराव सभी बिधिते सु रही नही बैंकहू और कचाई | हरि सो दुंद क्यो जु कर्यो सुसमाज सक्यो नहि नैंक चलाई । माया के सागर ते हमको सुकृपा करि लीन्हेसि आप बचाई । पडित भीमजू आये भले सब भाँति हरी हमरी दुचिताई । भीमसेन - अभिवादन मे भी "आर्य्य" लोगो की खूब खबर ली गई थी । “आर्य्य-कहते मे लाज आवति- जिने बैंक जीभ के चलैया वृथा मूड़के मरैया है" ॥ ' इत्यादि इन पद्यो से प्रकट होता है कि सत्यनारायण को 'आर्यसमाजियो' से बहुत चिढ थी । जिन लोगो ने सत्यनारायणजी को आगे चलकर देखा है वे इन कबन्दियो की असहनशीलता पर आश्चर्य करेगे ; लेकिन उन्हें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि जिस समय ये तुकबन्दियाँ रची गई थी, उस समय आर्यसमाजियो और सनातनियो में इसी तरह की हवा बह रही थी ।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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