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पं० सत्यनारायण कविरत्न
क्रीनोला मचूरिया को किकिटाओ कोरिया की,
उरगा मगोलिया की निहचै कर मानिये । टोक्यो जापान की अर मंडले हे वर्मा की,
_श्याम की बकाक ह्यू अनाम की बखानिये। लका की कोलम्बो और मक्का अरब की जान, यारकन्द तुर्किस्तान पूर्वी को जानिये ।
इत्यादि। ता० २२ सितम्बर सन् १८९६ ई० को सत्यनारायण ने वीर विक्रमाजीत के नवरत्न याद करने के लिए निम्नलिखित पद्य बनाया था --
धनोत्तरी श्यानक कही, अमरसिह को मान । शक बैताल बराह अरु, कालीदास बखान । घट खरपर और महरयुत, बरुचि जानो भाय ।
वीर विक्रमाजीत के, ये नवरत्न कहाय ॥ जिस समय सत्यनारायणजी हिन्दी-मिडिल में पढ़ते थे उन्ही दिनो उनकी माता बीमार पड़ गई । उस समय आपने यह गद्य बनाये थे .
माता की आरोग्यता के हेतु विनय मुनियो सामलिया साह मेरी गज की-सी टेर ।
मम माता मेरी प्राण सजीवन वाके दिवस अब केर । भक्तन के दुख-हरण सदा ते मेरी बेर अबेर ।
ध्रुव प्रहलाद उबारि कष्ट ते विरम रहे किहि केर । सत्यदेव आरत शरणागत मेरे दुःख निवेर । करियो आनंद आनंद-कन्द ।
तुम्हरी कृपा कटाक्ष के कारण विचरे जन स्वच्छन्द । जब-जब भीरःपरी भक्तन पै काटे तुम तिन फन्द ।।