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विद्यार्थी-जीवन
(सन् १८९०-१९१० ई०) सत्यनारायण के विद्यार्थी-जीवन को हम दो भागो में बॉट सकते है। एक तो हिन्दी-अध्ययन सन् १८९० से १८६६ तक और दूसरा अगरेजी अध्ययन सन् १८६७ से १९१० तक । यद्यपि सन् १८६० के पहले सत्यनारायण ने लुहारगली आगरे मे, वैद्यवर ५० रामदत्त के साथ, सारस्वत पढना प्रारम्भ किया था, जब कि वे अपनी माता के साथ रामदत्तजी के पिता देवदत्तजी के यहां रहे थे; तथापि नियमानुसार पढाई धाधूपुर पहुँचने पर ही प्रारम्भ हुई। पापुर आगरे लगभग तीन मील
और ताजगंज से दो फर्लाङ्ग की दूरी पर है। गोध की आबादी लगभग हजार-बारह सौ होगी । यह जाट लोगो की बस्ती हे । फरास, आम, नीम
और पीपल के वृक्ष यहाँ बहुत है। इसी ग्राम के एक कोने में खेतो से मिला हुआ वावा रघुबरदासजी का मन्दिर है। मन्दिर में भगवान् रामचन्द्रजी
और हनुमानजी की मूर्तियों हैं और बाबा अयोध्यादास तथा बावा रघुवरदासजी के चरण है । मन्दिर की छत पर से पश्चिम की ओर ताजबीबी का रौजा दीख पड़ता है और यमुना नदी की धार भी बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देती है। मन्दिर से मिला हुआ एक कुओं तथा इमली का वृक्ष है
और सामने बहुत-से नीम के वृक्ष खड़े है। वर्षाऋतु मे जब चारो ओर हरियाली छा जाती है, धाँधूपुर बहुत सुन्दर लगता है। यह आगरे से निकट भी है और दूर भी । इसलिये धाँधूपुर निवासी शहर के दूषित वातावरण से बचकर अपने ग्राम के लाभों का उपयोग कर सकते हैं।
वास्तव में सत्यनारायण की शिक्षा का आरम्भ इसी गांव से हआ समझना चाहिए। पहले पहल वे ताजगंज के मदर्से में पढ़ने गये थे।