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________________ ३ जन्म और बाल्यावस्था प्राचीन हिन्दी-कव्यग्रन्थो की कुछ हस्तलिखित प्रतियाँ भी अपने यहाँ संग्रह को थी। जिस मन्दिर मे बाबा रघुबरदासजी रहते थे उससे कुछ भूमि भी लगी हुई थी। बाबाजी को अपनी निजी जायदाद से तीनसौ रुपये वार्षिक की आय हो जाती थी। __सत्यनारायण इन्ही बावाजी के मन्दिर मे रहा करते और धाँधूपुर को धूल मे, जाटो के लडको के साथ, खेलते थे। कहा जाता है कि बाल्यावस्था मे वे कुरूप स्त्रियो की गोद मे नही जाते थे। गाँव मे जो होली या रगति हआ करती थी उन्हे सत्यनारायण बडे ध्यानपूर्वक सुनते थे और उसी ध्वनि से गाया करते थे। उन्ही दिनो की एक रंगति उन्हे याद थी और वे उसे कभी-कभी ठीक गँवारूधुन मे गाते थे। पाठको के मनोरंजनार्थ उक्त रगति हम नीचे देते है-- रंगति मोहिनी चरित्र एक दिन की बात। कामिनि ने लीला करी, सो सुनियो जुरिमिलि भ्रात ॥ शची शारदा रमा भवानी ताकी समता ना करें। पैदा भई राजदुलारी । सो कैसे परगट भई कामिनी। जाके माता पितु नही, नही भ्रात और कन्थ । कामिनि काम बढामिनी जा' गामे ग्रन्थ । जनम जब कामिनि ने लीन्यौ, मातु को ढिग नाऐ चीन्यो। पिता तिरलोकी मे नाएं, भई मो पैदा कन्याए । खबर काऊ ने नॉय पाई। लियो नारि औतार कि जाने कॉते कढि आई। बैदा दिपि रह्यो लिलार लाल भई जोती।
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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