SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २३ ) पप्रमर्श देना, ये बाते तो वे जानते ही नही । विद्वान तो ससार में बहुत से है, लेखक भी सहस्रो है, पर सहृदय कितने है ? सच बात तो यह है कि हृदयहीन विद्वान् के सम्मुख मेरी तबीयत घबराती है, मुझे इस बात की आशंका है कि हिन्दी-साहित्य-सेवी, व्यापारिकता के कारण अपने कोमल भावों को तिलाजलि देकर शुष्क “पुस्तक-लेखक-मशीन' बनते जा रहे है। जीवनी लिख चुकने के बाद चतुर्वेदीजी ने एक पत्र मे मुझे लिखा था -- .."सत्यनारायणजी के विषय मे मैने कई काम सोचे थे। (१) बचीखुची फुटकर कविताओं का संग्रह--यह 'हृदय-तरङ्ग' के नाम से प्रकाशित हो चुका है। (२) जीवनचरित-यह समाप्त करके हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन को दे दिया गया है । इसके लिए मुझे चार बार धाधूपुर जाना पड़ा, सैकडों ही चिट्ठिया लिखनी पड़ी, उनके बीसियो मित्रो से मिलना पड़ा। (३) चित्र--एक रङ्गीन चित्र अपने पास से १००। व्यय करके भारती-भवन फीरोजाबाद को दिया, और भारत-भक्त एन्ड्रज साहब को फीरोजावाद लाकर उसका उद्घाटन-सस्कार कराया और दूसरा चित्र ४५) व्यय करके प्रयाग हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन को दिया। (४) सत्यनारायण कुटीर--इसके लिये ८००) इकट्ठे करने का वादा कर चुका है, जिसमे से ३२४) भिजवा चुका हूँ। सत्यनारायणजी की जीवनी' से, या उनके 'हृदय-तरङ्ग' से एक पैसा भी मैने नही कमाया। इसमे अपने पास से कम से कम ३००) व्यय कर चुका हूँ।"......... पडित सत्यनारायण के चरित्र मे चतुर्वेदीजी का कितना अधिक अकृत्रिम अनुराग है, इसका कुछ आभास उक्त अवतरणो से मिल जायगा, इससे भी अधिक भक्तिभाव की झलक देखनी हो तो जीवनी का अन्तिम
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy