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________________ ( २१ ) कम करुणाजनक नही है ) जीवनी लिखने का पुण्य कार्य प्रारम्भ कर दिया है, जिसका श्रीगणेश सत्यनारायण की इस जीवनी से हुआ है । इसके सम्पादन में जितना परिश्रम चतुर्वेदीजी ने किया है, वह उन्ही का काम था और इसकी जितनी दाद दी जाय कम है । हिन्दी - ससार मे अपने ढंग का यह बिलकुल नया अनुष्ठान है । यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि हिन्दी के किसी भी कवि या लेखक की जीवनी का मसाला, उसकी मृत्यु के बाद, इस परिश्रम, लगन और खोज के साथ इकट्ठा नही किया गया । जाननेवाले जानते है कि सत्यनारायण की जीवनी से सम्बन्ध रखनेवाली एक-एक चिट्ठी के लिये जीवनी लेखक को कितना भगीरथ प्रयत्न करना पड़ा है, यदि इन सब बातो का उल्लेख किया जाय तो एक खासा जासूसी उपन्यास तैयार हो जाय । जो चाहे सत्यनारायणजी की जीवनी के उस मसाले को हिन्दी - साहित्य सम्मेलन के हिन्दी सग्रहालय मे जाकर देख सकता है । सच तो यह है कि सत्यनारायणजी की यह जोवनी प० बनारसीदासजी ही लिख सकते थे । यो कहने को सत्यनारायणजी के अनेक अन्तरङ्ग और गाढ़े मित्र थे ओर है; पर मित्रता का नाता चतुर्वेदोजी ने ही निवाहा है । मानो मरते वक्त सत्यनारायण की आत्मा इनके कान मे कह गयी थी “यो तो मुँह देखे की होती है मुहब्बत सबको ।, मैं तो तब जानूँ मेरे बाद मेरा ध्यान रहे ||" जीवनी लिखने का उपक्रम करके चतुर्वेदीजी प्रवासी भारत वासियो के पुराने राजरोग में फँसकर जीवनी के कार्य को स्थगित कर बैठे थे, इस पर मैने तक़ाज़े के दो-तीन पत्र लिखकर उन्हे जीवनी को याद दिलाई, शीघ्र पूरा करने की प्रेरणा की, और पूछा कि क्या इस पचड़े मे पड़ कर सत्यनारायण को भी भूल गये । इसके उत्तर मे जो पत्र उन्होंने लिखा, उसके एक-एक शब्द से नि स्वार्थ प्रेम, गहरी सहृदयता और सच्ची सहानुभूति टपकती है । मैं उस पत्र का कुछ अश इस अभिप्राय से यहा उद्धृत
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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