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( १६ ) विवाद उठ चुका है। ब्रजभाषा के प्रवीण पारखी श्रीवियोगी हरिजी ने "बजमाधुरीसार मे लिखा है--
इसमें सन्देह नहीं कि सत्यनारायणजी ब्रजभाषा के एक महाकवि थे"
इस पर एक विद्वान् समालोचक ने यह कहकर आपत्ति की--.""सत्यनारायण को महाकवि कहना उनकी स्तुति भले ही हो, पर उसका औचित्य भी मानने के लिये कमसे कम हम तो तय्यार नहीं है"।
इस पर वियोगी हरिजी ने “नम्र निवेदन किया--
"जो कवि एक आलोचक को दृष्टि मे महाकवि है वही दूसरे की नजर मे साधारण कवि भी नही है। स्वर्गीय सत्यनारायण को अभी चाहे कोई महाकवि न माने, पर कुछ काल के बाद वे नि सदेह महाकवियो की श्रेणी मे स्थान पायँगे। यह अनुमान मुझे महाकवि भवभूति, वर्डस्वयं ओर देव का स्मरण करके हुआ है।"
--"सम्मेलन-पत्रिका", भा० ११, अ० १० । भगवान करे ऐसा ही हो। अब न सही, आगे चलकर हो सत्यनारायण को समझनेवाले पैदा हो और श्रीवियोगो हरिजी को इस सूक्ति का अनुमोदन करे
"जगब्योहारन भोरौ कोरी गाम-निवासी। ब्रज-साहित्य-प्रवीन काव्य-गुन-सिन्धु-विलासी । रचना रुचिर बनाय सहज ही चित आकरषै । कृष्ण-भक्ति अरु देस-भक्ति आनंद रस बरसै । पढि 'हृदय-तरग' उमग उर प्रेमरग दिन-दिन चढ़े। सुचि सरल सनेही सुकवि श्रीसतनारायन जसु बढे !"
----कविकीर्तन सत्यनारायण की जीवनी करुण-रसका एक दुःखान्त महानाटक है। जिस प्रतिकूल परिस्थिति मे उन्हे जीवन बिताना पड़ा और फिर जिस