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________________ ( १८ ) हुआ था, नन्दन कानन का यह पारिजात खिलने भी न पाया था कि ससार की विषैली वायु के झोको ने झुलसा दिया ! व्रजकोकिल ने पञ्चम मे आलाप भरना प्रारम्भ ही किया था कि निर्दय काल ब्याथ ने गला दबा दिया | भारतीय आत्मा कृष्ण को पुकारती ही रह गयी और कोकिल उड़ गया ! "वह कोकिल उड़ गया, वह गया, कोकिल उड़ गया, गया, वह गया, कृष्ण दौड़ो, आओ ।" ससार मे समय-समय पर और भी ऐसी दुर्घटनाएं हुई है, पर सत्यनारायण का इस प्रकार आकस्मिक वियोग भारत-भारती हिन्दी भाषा का परम दुर्भाग्य ही कहा जायगा । इस जीवनी मे सत्यनारायण के सार्वजनिक जीवन पर उनकी साहित्य- सेवा और व्यक्तित्व पर, अनेक विद्वानो ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से विचार किया है, और खूब किया है; कोई बात बाकी नही छोड़ी । मैं भी प्यारे सत्यनारायण की याद मे चार आँसुओ की जलाञ्जलि दे रहा हूँ। मेरी इच्छा थी कि उनकी कविता पर ( और यही उनका वास्तविक जीवन था ) जरा और विस्तृत रूप से विचार करूँ। पर सोचने पर अपने मे इस काम की पात्रता न पायी, क्योकि मैं व्रजभाषा की कविता का पक्षपाती प्रसिद्ध हूँ, और सत्यनारायण मेरे मित्र थे । सत्यनारायण की कविता की समालोचना का यथार्थ अधिकारी कोई तटस्थ विद्वान् ही हो सकता है, जो इस समय तो नही पर कभी आगे चलकर सम्भव है- "कालोयं निरवधिविपुला च पृथ्वी ।" दुर्भाग्य की बात है कि सत्यनारायणजी को उत्कृष्ट कविता का अधिकाश 'यार लोगों की इनायत' से नष्ट होगया । जिसके लिए वे अन्त समय तक तड़पते रहे । फिर भी उनकी बची-खुची जो कविता इस समय उपलब्ध है, वह उन्हें कम से कम कविरत्न प्रमाणित करने के लिये, मैं समझता हैं, पर्याप्त है । भले ही कुछ समालोचक उन्हे 'महाकवि' मानने को तैयार न हो; अपनी-अपनी साझ ही तो है । सत्यनारायण के सम्बन्ध मे यह
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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