SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्यनारायणजी की कुछ स्मृतियाँ श्रीयुत भगवन्नारायणजी भार्गव, वकील (झॉसी) “मै सन् १९१० को जुलाई में सेन्टजान्स कालिज मे शिक्षा प्राप्त करने गया था । वही पर सत्यनारायणजी का प्रथम दर्शन हुआ था । एक स्वदेशी बंडी पहने, गले में अरुण डुपट्टा, देशी टोपी और देशी धोती । वाह ! कैसी मनोहारिणी स्वदेशभक्ति की मूर्ति थी । भार्गव बोर्डिङ्ग - हाउस मे रहता था । सप्ताह मे एक बार तो अवश्य ही दर्शन दिया करते थे। जब हम लोग भोजन करने बैठते थे तब वे अपनी पुरानी गाथा सुनाया करते थे । भोजन करते समय यह अवश्य कह लेते थे कि भाई हम तो आधे भार्गव हो गये। XXX आप कृष्ण के भक्त थे । प्रायः अपनी कविताओ द्वारा उनको बड़े गहरे उलाहने दिया करते थे । मेरी ईश्वर-प्रार्थना आदि देखकर कहा करते थे कि तुम ईश्वर का पीछा छोड़ो और जो उनसे न बनती हो तो माखन-मिश्री चुराने और खानेवाले की बचनावली सुनाओ । x x आप मुझको पत्र भी कविता मे लिखते थे । उनमे बाते यद्यपि साधारण होती थी पर कभी-कभी उनमे नवीन भाव भी आ जाता था । एक बार मैने पत्र भेजा; परन्तु जिस दिन धाँधूपुर डाक जाती थी उसके एक दिन बाद मैंने उसे डाक मे डाला, इस कारण एक सप्ताह मे मिला । आपने प्रत्युत्तर दिया- "प्रियवर पायो पत्र तुम्हारो सब प्रकार सुख-मूल । किन्तु मिल्यो है दिना पिछारी डाक भई प्रतिकूल ॥" आप प्राय गणागण शुभाशुभ शब्द का भी विचार रखते थे और यह भी आपका विश्वास था कि कविता के भाव का प्रभाव कवि पर भी पड़ता है | जब आपके गुरु बाबा रघुवरदास का सहसा देहान्त होगया तो आपने मुझसे कहा--"मुझको यह आशंका न थी कि गुरुजी का देहान्त अभी हो
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy