SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरित्र पर एक दृष्टि १६९ ने कुछ लिखकर भेजा है वह सत्यनारायणजी के चरित्र पर अच्छा प्रकाश डालता है । इसलिये उसे हम यहाँ उद्धृत किये देते है। “यशेच्छा महानपुरुषो की अन्तिम कमजोरी है। काव्य के उद्देश्यो मे यश पहला स्थान पाता है ('काव्य यशसे अर्थ कृते' इत्यादि)। प० सत्यनारायणजी मे न यशेच्छा थी और न धनेप्सा । इसलिए वे वर्तमान कवियों मे रत्न-रूप थे। उन्होने जो कुछ लिखा 'स्वान्त सुखाय' लिखा । सच्ची कला का उदय तभी होता है जब उसका अनुशीलन किसी बाहरी अर्थ वा प्रयोजन से नहीं होता । परीक्षा-काल मे विद्यार्थियो की सारी शक्तियाँ पाठ्य पुस्तको मे केन्द्रस्थ हो जाती है; किन्तु कविरत्नजी को “धोये-धोये पातन की" शोभा-वर्णन मे परीक्षा की खबर न रही! इससे अधिक और कविता का प्रेम क्या हो सकता है ? पडितजी ने विश्व-विद्यालय की परीक्षा में फेल होकर कविता की सच्ची परीक्षा मे उच्च पद पाया था। उनके चेहरे पर सन्तोष और शान्ति की एक अलौकिक छटा रहती थी । वास्तव मे वह इस कठोर ससार के योग्य न थे । इसीलिये वह मृत्यु के छाया-पथ द्वारा शीघ्र ही अन-त सुख और शान्ति के लोक को प्रयाण कर गये । जितने दिन रहे, उतने दिन इस सघर्षणशील ससार को शान्ति-पाठ पढाते रहे। यद्यपि उनका जीवन कष्टमय था तथापि वे सहनशीलता के माधुर्य से निकटस्थ लोगो के माधुर्य मे आनन्द की झलक डालते रहे । आपने फैशन के केन्द्र मे, सादगी के जीवन का अपने उदाहरण से, प्रतिपादन किया। दूसरो के अनादर से कभी रष्ट नहीं हुए। यदि किसी ने उपहास किया तो स्वयं ही उस उपहास मे शामिल हो गये ! रोष को अपने हृदय मे स्थान नहीं दिया। दुख.ने कभी उन पर जय नहीं पायी । बढती हुई यश की लहर ने उन्हे कभी मदोन्मत्त नही किया। कविता से नितान्त अनभिज्ञ को भी गुरुपद देने को तैयार रहते थे। अरसिको तक को कविता सुनाने में संकोच न था। वह सबको अपने से बड़ा ही समझते थे। आगरे मे कोई ऐसी सभा न होती जिसका मूल्य उनकी कविता द्वारा न बढ जाता हो। ऐसा कोई पत्र न था जिसके
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy