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सत्यनारायणजी का व्यक्तित्व एकत्र जो चहह पेखन प्रेम-पागी।
तो श्रीधरोक्त कविता पढिये ऽनुरागी" ॥ "चौपटानन्दजी" इसी वजन की निम्नलिखित कविता कविरत्न सत्यनारायणजी के विषय मे कर रहे है---
कालो नई मिरच तोखन तीतताई। डाला कुनैन ज्वर की अथवा दवाई ॥ गॉजा अफीम विजया सब भाति फीका ।
देखो सुजान कविता कविरत्नजी का ॥ ८ फरवरी के "प्रताप" मे “गड़बडानन्द" के किसी भाई-बन्दका निम्नलिखित मजाक छपा था और सत्यनारायण ने इसे डायरी मे नोट कर लिया या। ___“सारन के पाण्डेजी को रज है कि रिश्तेदारी होने पर भी हिन्दी के इतिहास-रचयिताओ ने एक लाइन से भी कम उनके विषय मे लिखी है। ऐसे ही और लोग भी नाक-भौह सिकोड रहे है; लेकिन जो चाहते हों कि ससार उनकी प्रतिष्ठा करे तो उनको चाहिए कि वे अपनी प्रतिष्ठा आप करें । शायद यही सोचकर अखिलानन्द महाराज और सत्यनारायण बाबा दुनिया के लाख ना-ना कहने पर भी कविरत्न हो गये। सुनते हैं, अब भो नन्दकुमारदेव शर्मा को साहित्य-अष्टादशांग की पदवी मिलने वाली है ।" कभी-कभी पंडितजी बड़े आनन्द के साथ गाया करते थे-- पिया बिन नागिन काली राति । कबहुँ रैनि यह होति जुन्हैया डसि उल्टी हूँ जाति ॥ और कभी मजे मे आकर यह भी गाते थेछोहरा मोइ दै तीर कमान, पपीहरा का लेतु पिरान । पापी, वु तो पीउ-पीउ किलकारे, मोहि मारे मारे मारे ।