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पं० सत्यनारायण कविरत्न
तुम चौंना मोकू तारो, जगत रन नाम तिहारो। बलि तारी, प्रहलाद उबारो, तुम गजको सकट टारी॥
तुम चौना मोकूँ तारो॥* कभी-कभी समाचारपत्रो मे आपकै नाम पर कुछ मजाक छपता था तो आप खूब हँसते थे और उसे अपनी डायरी मे नकल कर लेते थे।
सत्यनारायणजी के विवाह के बाद श्रीयुत 'मोजो" ने आपके विषय मे 'भारतमित्र" में लिखा था--
"सत्यनारायणजी अब काव्य क्यो महाकाव्य लिख सकते है; क्योकि हरिद्वार मे उन्हे कविता की कुइया मिल गई है। अब वह मजे मे नित्य कविता उलीचा करे ।"
श्रीयुत "गडवडानन्द' ने १८ जननरी सन् १९१५ के 'प्रताप' में लिखा था--- ___ 'श्रीयुत श्रीधरजी की कविता के विषय मे पूज्य "सरस्वती' सम्पादक की राय है--
'बाला-बधू-अधर-अद्भुत-स्वादुताई।
द्राक्षाहु की मधुरिमामधु की मिठाई ॥
* जब भरतपुर के महाराज को अधिकार मिले ती पंडितजी भरतपुर गये थे । उन्होने उस अवसर के लिये नीचे लिखा एक रसिया भी बनाया था जो कई जगह गाया गया । बनि दुलहिन-सी रही आज
___ भर्तपुर नागरिया। द्वार-द्वार में लिखना काढ़े,
जुरचौ उछाह समाज ॥
भर्तपुर नागरिया ॥ जाट लोग भरतपुर का उच्चारण भर्तपुर ही करते है ।