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________________ चार आँसू पडित सत्यनारायण, सरलता को-विनय की-मूत्ति, स्नेह की प्रतिमा और सज्जनता के अवतार थे । जो उनपे एक बार मिला, वह उन्हे फिर कभी नही भूला । मुझे वह दिन और वह दृश्य अबतक याद है । सन् १९१५ ई० मे, (अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह मे) उनमे प्रथमवार साक्षात्कार हुआ था। प० मुकुन्दराम का तार पाकर वे ज्वालापुर आये थे। मै उन दिनो वही महाविद्यालय मे था। वे स्टेशन से सीधे (प० मुकुन्दराम के साथ) पहले मेरे पास पहुंचे। मै पढा रहा था। इससे पूर्व कभी देखा न था, आने की सूचना भी न थी । सहसा एक सौम्यमूत्ति को विनीत भाव से सामने उपस्थित देखकर मैं आश्चर्यचकित रह गया। दुपल्लू टोपी, वृन्दावनी बगलबन्दी, घुटनों तक धोती, गले मे अंगोछा । यह वेप-भूषा थी । आँखो से स्नेह बरस रहा था। भीतर की स्वचरता और सदाशयता मुस्कराहट के रूप मे चेहरे पर झलक रही थी । उस समय 'किरातार्जुनीय' का पाठ चल रहा था। व्यास-पाण्डव समागम का प्रकरण था । व्यासजी के वर्णन में भारत की ये सूक्तियाँ छात्रो को समझा रहा था--- "प्रसह्य चेत.सु समासजन्तमसंस्तुतानामपि भावमाम्" "माधुर्य विनम्भ-विशेष भाजा कृतोपसंभाषमिवेक्षितेन" इन सूक्तियों के मूर्तिमान अर्थ को अपने सामने देखकर मेरी ऑग्वे खुल गई। इस प्रसंग को सैकड़ों बार पढ़ा, पढाया था, पर इनका ठीक अर्थ उसी दिन समझ में आया । मैं समझ गया कि हों न हों ये सत्यनारायण जी है; पर फिर भी परिचय-प्रदान के लिये पं० मुकुन्दराम को इशारा कर
SR No.010584
Book TitleKaviratna Satyanarayanji ki Jivni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Chaturvedi
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year1883
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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